यहोवा परमेश्वर और योना के बीच यह वार्तालाप निःसन्देह मनुष्य के लिए सृष्टिकर्ता की सच्ची भावनाओं का एक प्रकटीकरण है। एक ओर यह उसके अधीन सम्पूर्ण प्रकृति के विषय में सृष्टिकर्ता की समझ के बारे में लोगों को सूचित करता है; जैसा यहोवा परमेश्वर ने कहा: "जिस रेंड़ के पेड़ के लिये तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया, जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नष्ट भी हुआ; उस पर तू ने तरस खाई है। फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिसमें एक लाख बीस हज़ार से अधिक मनुष्य हैं जो अपने दाहिने बाएँ हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत से घरेलू पशु भी उसमें रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊँ?" दूसरे शब्दों में, नीनवे के विषय में परमेश्वर की समझ सतही से कहीं अधिक था। वह न केवल नगर में रहने वाले जीवित प्राणियों (मनुष्य व पशु समेत) की संख्या को जानता था, बल्कि वह यह भी जानता था कि कितने लोग अपने दाहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहचानते हैं—अर्थात्, कितने बच्चे या तरुण वहां मौज़ूद हैं। यह मानवजाति के विषय में परमेश्वर की श्रेष्ठतम समझ का एक ठोस प्रमाण है। दूसरी ओर यह वार्तालाप मनुष्य के प्रति परमेश्वर के रवैये के विषय में लोगों को सूचित करता है, दूसरे शब्दों में, यह सृष्टिकर्ता के हृदय पर मनुष्य के बोझ को सूचित करता है। यह ठीक वैसा है जैसा यहोवा परमेश्वर ने कहा: "जिस रेंड़ के पेड़ के लिये तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया, जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नष्ट भी हुआ; उस पर तू ने तरस खाई है। फिर यह बड़ा नगर नीनवे, …तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊँ?" ये यहोवा परमेश्वर के वचन हैं जो योना पर दोष लगाते हैं, किन्तु वे सब सत्य हैं।
यद्यपि योना को नीनवे के लोगों के लिए यहोवा परमेश्वर के वचनों की घोषणा का काम सौंपा गया था, फ़िर भी उसने यहोवा परमेश्वर के इरादों को नहीं समझा था, न ही उसने नगर के लोगों के लिए उसकी चिंताओं और अपेक्षाओं को समझा था। एक फटकार के साथ परमेश्वर का अभिप्राय उसे यह बताना था कि मनुष्य उसके हाथों की रचना है, और परमेश्वर ने हर एक व्यक्ति के लिए कष्टप्रद प्रयास किया था; प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ परमेश्वर की आशाओं को लिए फिरता था, प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के जीवन की आपूर्ति का आनन्द लेता था; प्रत्येक व्यक्ति के लिए, परमेश्वर ने एक कष्टप्रद कीमत चुकाई थी। साथ ही इस फटकार ने योना को यह भी बताया कि परमेश्वर मनुष्य को संजोता है, वह उसके हाथों की रचना है, वैसे ही जैसे योना स्वयं रेंड़ के पेड़ को प्रिय जानता था। परमेश्वर अंतिम सम्भावित घड़ी से पहले किसी भी कीमत पर उन्हें आसानी से नहीं त्यागेगा; इसके अतिरिक्त, उस नगर में इतने सारे बच्चे और निरीह पशु थे। परमेश्वर की सृष्टि के इन युवा और अज्ञानी प्राणियों से व्यवहार करते समय, जो अपने दाहिने बाएं हाथों का भेद भी नहीं पहचानते थे, परमेश्वर इस प्रकार जल्दबाज़ी करते हुए उनके जीवन को समाप्त करने और उनके परिणाम को निर्धारित करने में और भी अधिक असमर्थ था। परमेश्वर ने उन्हें बढ़ते हुए देखने की आशा की थी; उसने आशा की थी कि वे अपने पूर्वजों के समान उन्हीं मार्गों पर नहीं चलेंगे, कि उन्हें फ़िर से यहोवा परमेश्वर की चेतावनी को नहीं सुनना होगा, और यह कि वे नीनवे के अतीत की गवाही देंगे। और तो और परमेश्वर ने, नीनवे के द्वारा पश्चाताप किए जाने के बाद उसे देखने, नीनवे के पश्चाताप के पश्चात् उसके भविष्य को देखने, और एक बार फ़िर से नीनवे को अपनी दया के अधीन जीवन जीते हुए देखने की आशा की थी। इसलिए, परमेश्वर की निगाहों में, सृष्टि के प्राणी जो अपने दाहिने और बाएं हाथों का भेद नहीं जान सकते थे, वे नीनवे के भविष्य थे। वे नीनवे के घृणित अतीत की ज़िम्मेदारी लेंगे, ठीक उसी तरह जैसे वे यहोवा परमेश्वर के मार्गदर्शन के अधीन नीनवे के अतीत और भविष्य के प्रति गवाही देने के महत्वपूर्ण कर्तव्य की ज़िम्मेदारी लेंगे। अपनी सच्ची भावनाओं की इस घोषणा में, मनुष्य के लिए यहोवा परमेश्वर ने सृष्टिकर्ता की दया को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत किया है। इसने मनुष्य को दिखाया है कि "सृष्टिकर्ता की दया" कोई खोखला वाक्यांश नहीं है, न ही यह खोखला वादा है; इसमें ठोस सिद्धान्त, पद्धतियाँ और उद्देश्य हैं। वह सच्चा और वास्तविक है, और किसी झूठ या कपटवेश का उपयोग नहीं करता है, और इसी रीति से उसकी दया को बिना रुके हर समय और हर युग में मनुष्य को प्रदान किया जाता है। फ़िर भी, आज के दिन तक, योना के साथ सृष्टिकर्ता का संवाद, परमेश्वर का इस बारे में एकमात्र और अति विशेष मौखिक कथन है कि वह मनुष्य पर दया क्यों करता है, वह मनुष्य पर दया कैसे करता है, वह मनुष्य के प्रति कितना सहनशील है और मनुष्य के लिए उसकी सच्ची भावनाएँ क्या हैं। यहोवा परमेश्वर का संक्षिप्त वार्तालाप मनुष्य के लिए उसके सम्पूर्ण विचारों को अभिव्यक्त करता है; यह मनुष्य के निमित्त परमेश्वर के हृदय के रवैये की सच्ची अभिव्यक्ति है, और साथ ही यह मनुष्य पर व्यापक रूप से दया करने का ठोस सबूत भी है। उसकी दया न केवल मनुष्य की प्राचीन पीढ़ियों को दी गई है; बल्कि यह मनुष्य के युवा सदस्यों को भी दी गई है, एक पीढ़ी से लेकर दूसरी पीढ़ी तक, ठीक उसी तरह जैसा हमेशा से होता आया है। यद्यपि परमेश्वर का क्रोध बार-बार मनुष्यजाति पर कुछ निश्चित जगहों और कुछ निश्चित समयों पर उतरता है, फ़िर भी उसकी दया कभी खत्म नहीं हुई है। अपनी करुणा के साथ, वह अपनी सृष्टि की एक पीढ़ी के बाद अगली पीढ़ी का मार्गदर्शन एवं अगुवाई करता है, वह अपनी सृष्टि की एक पीढ़ी के बाद अगली पीढ़ी की आपूर्ति एवं उनका पालन पोषण करता है, क्योंकि मनुष्य के प्रति उसकी सच्ची भावनाएं कभी नहीं बदलेंगी। जैसा यहोवा परमेश्वर ने कहा: "तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊँ?" उसने सदैव अपनी सृष्टि को संजोया है। यह सृष्टिकर्ता के धर्मी स्वभाव की दया है, और साथ ही यह सृष्टिकर्ता की विशुद्ध अद्वितीयता भी है।
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए
बाइबिल के उपदेश आपको बाइबल की गहराई में जाने और परमेश्वर की इच्छा को समझने में मदद करता हैI
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