सू जिंग, ताईवान
"तुम प्रभु में विश्वास करती हो, फिर भी एक झटके में अपना आपा खो देती हो। तुम थोड़ा भी क्यों नहीं बदली?" यह कहते हुए मेरे पति ने मुझे फटकारा। प्रभु की शिक्षाओं को जी न पाने कारण मैं बहुत परेशान थी, मैं अक्सर पाप के बंधनों को तोड़ने के लिए प्रभु से प्रार्थना करती थी। अपनी खोज के दौरान, मैंने प्रभु के दूसरे आगमन के कथनों को सुना, इससे मैंने आखिरकार अपने क्रोध को हल करने का मार्ग पा लिया। मैं अब आप सभी को अपने अनुभवों के बारे में बताना चाहती हूँ।
मैं पाप में जीती हूँ और स्वयं को मुक्त करने में पूरी तरह असमर्थ हूँ
अपने दैनिक जीवन में, मैं हमेशा पाप करके उसे स्वीकारने के चक्र के भीतर रहती थी। उदाहरण के लिए, एक बार, मैंने गुस्से में आकर अपने बच्चे को इसलिए डांट दिया क्योंकि वह खेलने का बहुत शौक़ीन था और अपने स्कूल के काम में बहुत सुस्त था। मेरे पति एक ओर खड़े रहकर, मुझे डांटते हुए नहीं देख सके, तो उन्होंने इसके लिए मेरी आलोचना की। मैं उनकी बात से सहमत नहीं थी, इसलिए हममें कहा-सुनी हो गयी। इस तरह का नज़ारा, एक आम बात हो गयी। हर बार भड़ास निकाल लेने के बाद जब मेरा गुस्सा शांत हो जाता था, तो मैं बहुत दुखी महसूस करती थी, खुद को धिक्कारती थी, खासकर जब मैं इन पदों के बारे में सोचती थी: "पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (1 पतरस 1:16), और "सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा" (इब्रानियों 12:14)। प्रभु पवित्र हैं, फिर भी मैं हमेशा पाप में रहती थी। मैं अपना आपा खोने से खुद को रोक नहीं पाती थी, न मैं अन्य लोगों के साथ शांति से रह पाती थी, तो मैं प्रभु को आखिर कैसे प्रसन्न कर सकती थी?
अपने आप में कुछ बदलाव लाने के लिए, मैंने अपनी आध्यात्मिक भक्ति को मजबूत किया, मैंने बाइबल पढ़ी और अधिक प्रार्थना की, मैंने अधिक उत्साह के साथ सभाओं में भाग लिया, मैं कलीसिया के हर कार्यक्रम में भी सक्रिय रूप से भाग लेती थी, लेकिन मैं अभी भी अपने उग्र स्वभाव की समस्या को हल न कर सकी, इस कारण मैं निराश महसूस करने लगी। मैं अक्सर सोचती थी: पादरी कहते हैं कि, प्रभु में विश्वास करने के बाद जब हम प्रार्थना करते हैं, पश्चाताप करते हैं, तो प्रभु हमारे पापों को क्षमा कर देते हैं और हम नए सिरे से निर्मित कर दिए जाते हैं। तो कैसे मुझे ये महसूस नहीं होता कि मेरे पास एक नया जीवन है, इसके बजाय क्यों मैं केवल लगातार पाप करती रहती हूँ, मेरी आत्मा और अंधकारमय क्यों हो रही है, मैं प्रभु को अपने पास महसूस क्यों नहीं कर पाती हूँ? इसलिए, मैं अक्सर आँसू बहाते हुए प्रभु से प्रार्थना करती थी: "हे प्रभु! मैं अपने गुस्से को कभी नियंत्रित नहीं कर पाती और मैं अपने आप को पाप के बंधन से मुक्त नहीं कर सकती। हे प्रभु, मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप पाप से दूर होने में मेरा मार्गदर्शन करें।"
मैं पाप की जड़ को समझ जाती हूँ
जून में एक दिन, मैं बहन वेईवेई और भाई केविन से मिली। वे दोनों धर्मनिष्ठ ईसाई थे, और हम अक्सर बाइबल पर संगति करने के लिए इकट्ठे होते थे। उनकी संगति प्रकाश से भरी होती थी। मुझे उनकी संगति को बहुत ही फायदेमंद लगती थी। मैंने उन्हें पाप में रहने के दर्द और अपने आप को इससे मुक्त कर पाने में शक्तिहीन होने के बारे में बताया। एक बार, भाई केविन ने मुझे खुशी से कहा, "प्रभु यीशु, जिनके लिए हम तरसे हैं, वे वापस लौट आए हैं, और अनुग्रह के युग के अपने काम की नींव पर, वह वचनों के माध्यम से न्याय का कार्य कर रहे हैं। केवल परमेश्वर के नए कार्य के साथ रहकर ही हम जीवन के जल की आपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।" जब मैंने सुना कि प्रभु लौट आए हैं, तो मुझे खुशी और उत्साह दोनों ही महसूस हुए। मैंने फ़ौरन भाई से पूछा: "आपने कहा कि प्रभु लौट आए हैं—क्या यह सच हो सकता है?"
भाई केविन ने कहा, "यह वास्तव में सच है। वे हमें पापों से पूरी तरह से बचाने और पाप करके उसे स्वीकारने के इस दर्दनाक जीवन से मुक्त होने में हमें सक्षम करने के लिए अंत के दिनों में लौट आये हैं। यह बाइबल की इस भविष्यवाणी को सटीक रूप से पूरा करता है: 'वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा' (इब्रानियों 9:28)। जैसा कि हम सभी जानते हैं, परमेश्वर के पहले देहधारण ने मानवजाति को छुड़ाने का कार्य किया और हमारे पाप प्रभु द्वारा माफ कर दिये गए। लेकिन, यह निर्विवाद है कि हम अभी भी लगातार पाप कर रहे हैं। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि प्रभु को हमसे क्या अपेक्षा है, फिर भी हम शायद ही कभी इसे अभ्यास में ला पाते हैं, और हम पाप से बंधे रहते हैं। वास्तव में इसका कारण क्या है?"
मैं हमेशा से इसे लेकर उलझन में रही थी और कभी इसे समझ नहीं पायी थी। मैं वास्तव में समझना चाहती थी, इसलिए मैंने भाई केविन की संगति को ध्यान से सुना।
तब भाई केविन ने मुझे परमेश्वर के वचनों के दो अंश भेजे, "उस समय यीशु का कार्य समस्त मानव जाति के छुटकारा का था। उन सभी के पापों को क्षमा कर दिया गया था जो उसमें विश्वास करते थे; जितने समय तक तुम उस पर विश्वास करते थे, उतने समय तक वह तुम्हें छुटकारा देगा; यदि तुम उस पर विश्वास करते थे, तो तुम अब और पापी नहीं थे, तुम अपने पापों से मुक्त हो गए थे। यही है बचाए जाने, और विश्वास द्वारा उचित ठहराए जाने का अर्थ। फिर भी जो विश्वास करते थे उन लोगों के बीच, वह रह गया था जो विद्रोही था और परमेश्वर का विरोधी था, और जिसे अभी भी धीरे-धीरे हटाया जाना था। उद्धार का अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य पूरी तरह से यीशु द्वारा प्राप्त कर लिया गया था, लेकिन यह कि मनुष्य अब और पापी नहीं था, कि उसे उसके पापों से क्षमा कर दिया गया था: बशर्ते कि तुम विश्वास करते थे कि तुम कभी भी अब और पापी नहीं बनोगे।" "यद्यपि मनुष्य को छुटकारा दिया गया है और उसके पापों को क्षमा किया गया है, फिर भी इसे केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता है और मनुष्य के अपराधों के अनुसार मनुष्य से व्यवहार नहीं करता है। हालाँकि, जब मनुष्य जो देह में रहता है, जिसे पाप से मुक्त नहीं किया गया है, वह भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को अंतहीन रूप से प्रकट करते हुए, केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है जो मनुष्य जीता है, पाप और क्षमा का एक अंतहीन चक्र। अधिकांश मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं ताकि शाम को स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए सदैव प्रभावी है, फिर भी यह मनुष्य को पाप से बचाने में समर्थ नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है।"
भाई केविन ने संगति देते हुए कहा, "परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। प्रभु यीशु द्वारा किया गया कार्य छुटकारे का कार्य था, जब तक हम प्रभु यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं, प्रभु से प्रार्थना करते और पश्चाताप करते हैं, तब तक हमारे पापों को क्षमा कर दिया जाएगा, और अपने विश्वास के कारण हम न्यायोचित हैं। हम अब पापी नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अब पाप नहीं करते हैं। हमारी पापी प्रकृति हमारे भीतर अभी भी मौजूद है इसलिए ही हम पाप करने और उसे स्वीकारने के इस चक्र के भीतर रहते हैं और खुद को पाप के बंधन से मुक्त करने में लगातार असमर्थ रहते हैं। अपनी शैतानी प्रकृति के वर्चस्व के तहत, हम अक्सर घमंडी, अभिमानी, स्वार्थी, घृणास्पद, झूठ बोलने वाले, कपटपूर्ण, दुष्ट और लालची, आदि भ्रष्ट स्वभावों को प्रकट करते हैं। जब दूसरे लोग ऐसी चीजें करते हैं जिनसे हम सहमत नहीं होते हैं, तो हम उन्हें नीचा दिखाने के लिए भाषण देते हैं, हम उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं, ताकि एक परिवार भी एक साथ शांति और सद्भाव से न रह सके। हम अपने हितों की ख़ातिर एकदूसरे के खिलाफ योजना बनाते हैं, संघर्ष करते हैं, और दोस्त दुश्मन बन जाते हैं। अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए, हम अक्सर झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं। बाहर से तो हम खुद को खपाते और परमेश्वर के विश्वास में चीजों को त्यागते हुए दिखाई दे सकते हैं, लेकिन वास्तव में हममें परमेश्वर के लिए कोई सच्चा प्यार नहीं है, जब बीमारी या प्रतिकूलता हम पर आती है, तब भी हम परमेश्वर को दोषी ठहराते हुए उन्हें धोखा देने की हद तक जा सकते हैं… बाइबल कहती है, 'सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। हम अभी भी अक्सर पाप के बीच रहते हैं, पाप करते हैं, प्रभु का विरोध करते हैं, हम प्रभु का चेहरा देखने के अयोग्य हैं। इसलिए हमें आवश्यकता है कि प्रभु उद्धार का एक और चरण करें और हमारे पापी स्वभाव को शुद्ध करें।"
भाई केविन की संगति सुनने से मुझमें रोशनी भर गयी। मैंने सोचा कि कैसे मैं अच्छी तरह से जानती थी कि प्रभु की हमसे क्या अपेक्षा है, और फिर भी इसे अभ्यास में लाने में कभी सक्षम नहीं हुई, कैसे मैं अपने पति और अपने बेटे के साथ अपने व्यवहार में हमेशा असहनशील और अधीर रहती थी, और अक्सर गुस्से में आकर उन्हें भाषण सुनाती थी। तो यह सब इसलिए हो रहा था क्योंकि मेरी पापी प्रकृति अभी भी मेरे भीतर मौजूद थी, इसलिए, चाहे मैं कितनी भी प्रार्थना करूँ, बाइबल पढूं या खुद को क्रूस ढोने में समर्थ होने में पारंगत बनाऊं, मैं खुद को कभी पाप के बंधन और बाधाओं से नहीं छुड़ा पाती थी। तब मैंने महसूस किया कि हमें वास्तव में प्रभु द्वारा उद्धार के एक और चरण की आवश्यकता है।
मैं पाप से बचने का मार्ग पाती हूँ
उस समय, एक और बहन ऑनलाइन थी, उसने पूछा, "भाई केविन, हम सभी पाप के बंधन से बाहर निकलना चाहते हैं, और मैंने इसे कई बार अलग-अलग तरीकों से ऐसा करने की कोशिश की है, लेकिन मुझे कभी सही मार्ग नहीं मिला। क्या आप हमारे साथ संगति कर सकते हैं कि प्रभु का दूसरा आगमन हमें पाप के बंधनों से कैसे बचाएगा?" बहन के प्रश्न को सुन, मैं भी जवाब का इंतज़ार करने लगी।
केविन ने कहा, "हाँ, बहन, यह सवाल जो आपने पूछा है, वो हमारे उद्धार के और स्वर्ग में प्रवेश करने के मामले के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर हमें पाप से कैसे बचाते हैं, इसके संबंध में, आइए पहले पवित्रशास्त्र से कुछ पदों को पढ़ें: 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। 'यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:47-48)। ये भविष्यवाणियाँ बहुत स्पष्ट हैं: परमेश्वर अंत के दिनों में लौट आयेंगे और वह सत्य को व्यक्त करेंगे और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को करेंगे। हमें पाप के बंधनों से दूर करने में सक्षम बनाने और हमारे शैतानी भ्रष्ट स्वभावों को पूरी तरह से दूर करने के लिए वो यह कार्य करते हैं। आइए परमेश्वर के वचनों के दो अन्य अंशों को देखें। परमेश्वर कहते हैं, 'अंत के दिनों में, मसीह मनुष्य को सिखाने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है, मनुष्य के सार को उजागर करता है, और उसके वचनों और कर्मों का विश्लेषण करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर का आज्ञापालन करना चाहिए, हर व्यक्ति जो परमेश्वर के कार्य को करता है, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मानवता से, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और उसके स्वभाव इत्यादि को जीना चाहिए। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खासतौर पर, वे वचन जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार से परमेश्वर का तिरस्कार करता है इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार से मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध दुश्मन की शक्ति है। अपने न्याय का कार्य करने में, परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता है; बल्कि वह लम्बे समय तक इसे उजागर करता है, इससे निपटता है, और इसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने की इन विधियों, निपटने, और काट-छाँट को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसे मनुष्य बिल्कुल भी धारण नहीं करता है। केवल इस तरीके की विधियाँ ही न्याय समझी जाती हैं; केवल इसी तरह के न्याय के माध्यम से ही मनुष्य को वश में किया जा सकता है और परमेश्वर के प्रति समर्पण में पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इसके अलावा मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य जिस चीज़ को उत्पन्न करता है वह है परमेश्वर के असली चेहरे और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता के सत्य के बारे में मनुष्य में समझ। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा की, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य की, और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त करने देता है जो उसके लिए समझ से परे हैं। यह मनुष्य को उसके भ्रष्ट सार तथा उसकी भ्रष्टता के मूल को पहचानने और जानने, साथ ही मनुष्य की कुरूपता को खोजने देता है। ये सभी प्रभाव न्याय के कार्य के द्वारा पूरे होते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया गया न्याय का कार्य है।' 'न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से, मनुष्य अपने भीतर के गन्दे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। वह सब कार्य जिसे आज किया गया है वह इसलिए है ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; न्याय और ताड़ना के वचन के द्वारा और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से, मनुष्य अपनी भ्रष्टता को दूर फेंक सकता है और उसे शुद्ध किया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाए, यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्ध करने का कार्य है।'"
केविन ने संगति देते हुए कहा, "परमेश्वर एक बार फिर देह बन गये हैं और प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर, परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को कर रहे हैं। हमारे भीतर की शैतानी प्रकृति का न्याय करने और हमारी भ्रष्टता को उजागर करने के लिए वचनों का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही हमें अपनी इच्छा और हमसे उनकी क्या अपेक्षा है, यह बता रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय को स्वीकार करने से, हममें अपने कुटिलता, छल, अहंकार, घमंड, दुष्टता, लालच, स्वार्थी और घृणास्पद होने जैसे शैतानी स्वभावों की सही समझ आ जाती है। इसके साथ ही, परमेश्वर के वचनों के न्याय के माध्यम से, हम जान जाते हैं कि परमेश्वर किस प्रकार के व्यक्ति को प्रेम करते हैं और किस प्रकार के व्यक्ति से घृणा करते हैं। हमें यह भी समझ आता है कि परमेश्वर का स्वभाव न केवल दयालु और प्रेमपूर्ण है, बल्कि धर्मी, प्रतापी और क्रोधपूर्ण भी है। केवल परमेश्वर के प्रतापी न्याय से ही हम परमेश्वर से भय खाने वाला दिल पाते हैं, और चाहे हम अपने मन के भ्रष्ट विचारों को प्रकट करें या पाप करें, हम अब केवल शब्दों से पश्चाताप नहीं करते हैं और केवल बाहर से अपने व्यवहार पर अंकुश लगाते हुए प्रकट नहीं होते हैं, बल्कि हम परमेश्वर के वचनों के न्याय को स्वीकार करते हैं, हमें अपनी शैतानी प्रकृति और सार का पता चलता है, हमारी भीतरी शैतानी प्रकृति के लिये दिल से नफ़रत पैदा होती है और तब हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करने में सक्षम हो जाते हैं। जितना अधिक हम परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करते हैं, उतना ही स्पष्ट रूप से हम अपने भ्रष्ट सार को देख पाते हैं, और सत्य का अभ्यास करने के लिए हमारा संकल्प उतना ही मजबूत हो जाता है; जब हम सत्य को अधिक से अधिक व्यवहार में लाते हैं, तो फिर, हमारा जीवन स्वभाव बदलाव से गुज़रता है।"
भाई केविन की संगति ने मुझे यह अनुभव करने दिया कि वास्तव में परमेश्वर का न्याय का कार्य कितना व्यवहारिक है। मैं इसे सुनकर बहुत प्रेरित हुई। हर एक दिन पाप करने और कबूल करने की स्थिति में जीने के कारण, मुझे सच में आवश्यकता थी कि परमेश्वर मुझे बचाने के लिए न्याय का यह कार्य करें।
बाद में, मैंने इंटरनेट से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का ऐप डाउनलोड किया। मैं हर दिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ती हूँ और अक्सर अपने भाइयों और बहनों के साथ सभाओं में भाग लेती हूँ। समय के साथ, मुझे ऐसे कई सत्य समझ में आये हैं, जिन्हें मैं प्रभु में अपने विश्वास के दौरान पहले कभी नहीं समझ पायी थी, जैसे कि परमेश्वर के नाम का रहस्य, परमेश्वर के देहधारण का रहस्य, मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य का उद्देश्य, हम झूठे मसीह और सच्चे मसीह के बीच भेद कैसे कर सकते हैं, और हम झूठी और सच्ची कलीसिया के बीच भेद कैसे कर सकते हैं, इत्यादि। मेरी आत्मा ने जीवन-जल की आपूर्ति पा लिया और मैंने पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का आनंद लिया। मैं निश्चित हो गयी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटे प्रभु यीशु हैं, और मैं अपने जीवन में परमेश्वर के कार्य को धीरे-धीरे अनुभव करना सीखने लगी।
मैं अपने गुस्से की जड़ को समझ गयी हूँ और परमेश्वर के वचन मेरे लिए अधिक कीमती हो गए हैं
एक बार, मेरा बेटा स्कूल के बाद घर आया और मैं उसकी स्कूल की डायरी के पन्ने पलट रही थी, तो मैंने एक शिक्षक का संदेश देखा: "चेंगचेंग की आज स्कूल में अपने सहपाठियों के साथ लड़ाई हुई है। बहुत कहने पर भी उसने अपनी गलती नहीं मानी, और मुझे ही गुस्सा दिखाने लगा। कृपया अपने बच्चे की शिक्षा सुनिश्चित करें।" इसे पढ़कर तो मैं आपे से बाहर हो गयी। मेरा बेटा वास्तव में मुझे बहुत परेशान कर रहा था और हमेशा मुझे दुःख देता था। मुझे सालों से इस तरह के कई नोट मिले थे, और मुझे अक्सर शिक्षकों और अन्य माता-पिताओं से माफी मांगनी पड़ी थी। जितना मैं इसके बारे में सोचती गयी, उतना ही मुझे गुस्सा आता गया, और मैंने उसे अच्छी तरह से डांट लगाई। डांट सुनने के बाद उसे देखकर लगा जैसे उसके साथ कुछ गलत हुआ है। उसे इतना डरा हुआ देखकर, मैं परेशान हो गई और खुद को फटकार लगाई। मैं तब खोजने के लिए परमेश्वर के सामने गयी, और मैंने परमेश्वर के इन वचनों को देखा: "जब एक बार किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक कद मिल जाता है, तो उसे अक्सर अपने मिजाज़ पर नियन्त्रण पाने में कठिनाई महसूस होगी, और इस प्रकार वह अपने असंतोष को अभिव्यक्त करने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए घटनाओं का इस्तेमाल करने में आनन्द लेगा; वह अक्सर बिना किसी स्पष्ट कारण के क्रोध से आगबबूला होगा, जिससे अपनी योग्यता को प्रकट कर सके और दूसरे जान सकें कि उसकी हैसियत और पहचान अन्य सामान्य लोगों से अलग है। नि:संदेह, भ्रष्ट लोग बिना किसी हैसियत के भी बार-बार नियन्त्रण खो देते हैं। उनके व्यक्तिगत हितों के नुकसान होने पर उनका क्रोध बार-बार प्रकट होता है। अपनी स्वयं की हैसियत और गरिमा की सुरक्षा करने के लिए, भ्रष्ट मानवजाति बार-बार अपनी भावनाओं को व्यक्त करेगी और अपने अहंकारी स्वभाव को प्रकट करेगी।" परमेश्वर के वचनों में इन प्रकटनों को पढ़ने के बाद ही मुझे इस बात की जड़ का पता चला कि मैंने अपने बेटे को लेकर आपा क्यों खो दिया—ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरी प्रतिष्ठा को चोट पहुँची थी। जब भी कोई शिक्षक यह कहते हुए संदेश भेजता कि मेरे बेटे ने कोई गलती की है, तो मुझे लगता था कि मेरा बेटा मेरी छवि को ख़राब कर रहा है, उसके कारण औरों के सामने मैं बुरी बन रही हूँ, इसीलिए मैंने उसे इतनी खरी-खोटी सुनाई। मुझे यह भी समझ में आया कि क्रोधित होना मेरे शैतानी अहंकारी स्वभाव की अभिव्यक्ति थी। अतीत में, अपने बेटे की बुरी आदतें छुड़ाने के लिए, मैं अक्सर अपना आपा खोकर उसे खरी-खोटी सुनाती थी, ज़बरदस्ती उसकी बुरी आदतों को बदलना चाहती थी। बाहर से, ऐसा लगता था मैं सबकुछ अपने बेटे के भले के लिए कर रही हूँ, लेकिन वास्तव में, मैं अपने बेटे के साथ शैतानी अहंकारी स्वभाव पर निर्भर रहते हुए व्यवहार कर रही थी, साथ ही मैं उसे नुकसान भी पहुंचा रही थी। मैंने अंत में देखा कि मैं जो जीवन जी रही थी उसका किसी सच्चे इंसान से कोई संबंध नहीं था, मैं बहुत स्वार्थी और अभिमानी थी। जब मैंने इसके बारे में ध्यान से सोचा, तो मैंने महसूस किया कि बच्चों के लिए गलतियाँ करना सामान्य था, मुझे उसे बेहतर, अधिक व्यवस्थित तरीके से राह दिखानी चाहिए, ताकि वह अपनी बुरी आदतों को बदलना सीखे, अपने अहंकारी स्वभाव पर टिके रहकर उसे भाषण नहीं देना चाहिए।
बाद में, जब भी अपने बेटे की गलती पर मेरा गुस्सा करने का मन होता था, तो मैं तुरंत परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करती थी। मैं अपने बेटे को परमेश्वर को सौंप कर मै अपने बेटे का मार्गदर्शन करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करना सीखा। मैंने देखा कि मेरा बेटा धीरे-धीरे कुछ हद तक बदलने लगा था, और उसके शिक्षकों ने मुझे यह कहते हुए बहुत कम ही संदेश भेजे कि स्कूल में उसने सहपाठी के साथ झगड़ा किया है। और तो और, मेरे बेटे के साथ मेरे संबंध बेहतर हो गए, इसने मुझे वो आनंद महसूस करने दिया जो सत्य का अभ्यास करने से मिलता है।
परमेश्वर का धन्यवाद! मुझे परमेश्वर के परिवार में वापस आने और परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का अनुभव कर पाने का सौभाग्य मिला है। स्वभाव में परिवर्तन का प्रयास के संबंध में अब मेरे पास अनुसरण करने के लिए एक रास्ता है, अब मैं परमेश्वर के कुछ वचनों को व्यवहार में लाने में सक्षम हो गयी हूँ। मेरे पति ने मुझसे खुशी से कहा, "जब से तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने लगी हो, तब से तुम बहुत बदल गयी हो। हमारे घर में हँसी-खुशी की आवाज़ें गूंज रही हैं।" मुझे पता है कि यह सब इसलिए है क्योंकि मुझे परमेश्वर के वचनों द्वारा बदला गया, क्योंकि उन वचनों ने मुझे सच्चे मनुष्यों जैसे जीने में सक्षम बनाया था। परमेश्वर के वचन बहुत कीमती हैं!
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए
यीशु मसीह का दूसरा आगमन खंड यीशु मसीह की वापसी के स्वागत में आपकी सहायता करते हैंI
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