सृष्टिकर्ता का धर्मी स्वभाव सच्चा और स्पष्ट है

परमेश्वर की करुणा और सहनशीलता दुर्लभ नहीं है – मनुष्य का सच्चा पश्चाताप दुर्लभ है

    इसके बावजूद कि परमेश्वर नीनवे के लोगों से कितना क्रोधित था, ज्यों ही उन्होंने उपवास की घोषणा की और टाट ओढ़कर राख पर बैठ गए, त्यों ही उसका हृदय धीरे-धीरे कोमल होता गया, और उसने अपना मन बदलना शुरू कर दिया। जब उसने उनके लिए घोषणा की कि वह उनके नगर को नष्ट कर देगा – अपने पापों के निमित्त उनके अंगीकार और पश्चाताप के कुछ समय पहले – परमेश्वर तब भी उन से क्रोधित था। जब एक बार वे पश्चाताप के कार्यों की एक श्रृंखला से होकर गुज़र गए, तो नीनवे के लोगों के निमित्त परमेश्वर का क्रोध धीरे धीरे उनके लिए दया और सहनशीलता में रूपान्तरित हो गया। एक ही घटना में परमेश्वर के स्वभाव के इन दोनों पहलुओं के प्रकाशन को एक साथ मिलने के विषय में कोई विरोधाभास नहीं है। किसी व्यक्ति को विरोधाभास की इस कमी को कैसे समझना और जानना चाहिए? चूंकि नीनवे के लोगों ने पश्चाताप किया तो परमेश्वर ने सफलतापूर्वक इन दोनों ध्रुवीय-विपरीत हस्तियों को प्रकट और प्रकाशित किया, जिसने लोगों को परमेश्वर की हस्ती की यथार्थता और उसके उल्लंघन न किए जा सकनेवाले गुण को देखने की अनुमति दी। परमेश्वर ने लोगों को निम्नलिखित बातें बताने के लिए अपनी मनोवृत्ति का उपयोग किया: ऐसा नहीं है कि परमेश्वर लोगों को बर्दाश्त नहीं करता है, या वह उन पर दया करना नहीं चाहता है; यह ऐसा है कि वे कभी कभार ही परमेश्वर के प्रति सच्चा पश्चाताप करते हैं, और ऐसा कभी कभार ही होता है कि लोग सचमुच में अपने कुमार्ग से फिरते हैं और अपने हाथों से उपद्रव करना त्यागते हैं। दूसरे शब्दों में, जब परमेश्वर मनुष्य से क्रोधित हो जाता है, तो वह आशा करता है कि मनुष्य सचमुच में पश्चाताप करने में समर्थ होगा, और वह मनुष्य के सच्चे पश्चाताप को देखना चाहता है, ऐसी दशा में तब वह उदारता से मनुष्य को अपनी दया और सहनशीलता प्रदान करता है। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य का बुरा चालचलन परमेश्वर के क्रोध को उनके ऊपर लाता है, जबकि परमेश्वर की दया और करुणा को उनके ऊपर उण्डेला जाता है जो परमेश्वर को ध्यान से सुनते हैं और सचमुच में उसके सम्मुख सच्चा पश्चाताप करते हैं, और इसे उनके ऊपर उण्डेला जाता है जो अपने कुमार्ग से फिर जाते हैं और अपने हाथों से उपद्रव करना त्याग कर देते हैं। नीनवे के लोगों के उपचार में परमेश्वर की मनोवृत्ति को बिलकुल साफ साफ प्रकाशित किया गया है: परमेश्वर की दया और सहनशीलता को प्राप्त करना बिलकुल भी कठिन नहीं है; वह एक व्यक्ति से सच्चे पश्चाताप की अपेक्षा करता है। जब तक लोग अपने कुमार्गों से परे रहते हैं और अपने हाथों से उपद्रव करना त्याग देते हैं, परमेश्वर उनके प्रति अपने हृदय और अपनी मनोवृत्ति को बदलेगा।

सृष्टिकर्ता का धर्मी स्वभाव सच्चा और स्पष्ट है

    जब परमेश्वर ने नीनवे के लोगों के वास्ते अपने मन को बदल लिया, तो क्या यह उसकी करुणा और सहनशीलता एक दिखावा थी? नहीं, बिलकुल भी नहीं! फिर एक ही मुद्दे के दौरान परमेश्वर के स्वभाव के दोनों पहलुओं के बीच का रूपान्तरण तुम्हें क्या देखने देता है? परमेश्वर का स्वभाव पूरी तरह से सम्पूर्ण है; यह बिलकुल भी खण्डित नहीं है। इस पर ध्यान दिए बिना कि वह लोगों के प्रति क्रोध प्रकट कर रहा है या दया एवं सहनशीलता, यह सब उसके धर्मी स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं। परमेश्वर का स्वभाव सच्चा एवं सुस्पष्ट है। वह अपने विचारों और रवैयों को चीज़ों के विकास अनुसार बदलता है। नीनवे के निवासियों के प्रति उसके रवैये का रूपान्तरण मानवता को बताता है कि उसके पास अपने स्वयं के विचार और युक्तियां हैं; वह रोबोट या मिट्टी का कोई पुतला नहीं है, परन्तु स्वयं जीवित परमेश्वर है। वह नीनवे के लोगों से क्रोधित हो सकता था, ठीक उसी तरह जैसे वह उनके रवैये के अनुसार उनके अतीत को क्षमा कर सकता था; वह नीनवे के लोगों के ऊपर दुर्भाग्य लाने का निर्णय ले सकता था, और वह उनके पश्चाताप के कारण अपना निर्णय बदल सकता था। लोग यांत्रिक रूप से नियमों को लागू करना अधिक पसंद करते हैं, और वे परमेश्वर को पूर्ण करने और परिभाषित करने के लिए नियमों का उपयोग करना अधिक पसंद करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे वे परमेश्वर के स्वभाव को जानने के लिए सूत्रों का उपयोग करना अधिक पसंद करते हैं। इसलिए, मानवीय विचारों के आयाम के अनुसार, परमेश्वर विचार नहीं करते, और न ही उनके पास कोई स्वतन्त्र योजनाएँ हैं। असलियत में, परमेश्वर के विचार चीज़ों और वातावरण में परिवर्तन के अनुसार निरन्तर रूपान्तरित हो रहे हैं; जब तक ये विचार रूपान्तरित हो रहे हैं, परमेश्वर के अस्तित्व के विभिन्न पहलू प्रकट होंगे। रूपान्तरण की इस प्रक्रिया के दौरान, उस घड़ी जब परमेश्वर अपना मन बदलता है, तब वह मानवजाति पर अपने जीवन के अस्तित्व की सच्चाई को प्रकट करता है, और वह यह प्रकट करता है कि उसका धर्मी स्वभाव सच्चा और सुस्पष्ट है। इससे बढ़कर, परमेश्वर मानवजाति के प्रति अपने क्रोध, अपनी दया, अपनी करुणा और अपनी सहनशीलता के अस्तित्व की सच्चाई को प्रमाणित करने के लिए अपने सच्चे प्रकटीकरणों की उपयोग करता है। उसकी हस्ती को चीज़ों के विकास के अनुसार किसी भी समय पर और किसी भी स्थान में प्रकट किया जाएगा। उनमें एक सिंह का क्रोध और माता की ममता एवं सहनशीलता होती है। किसी मनुष्य को उनके धर्मी स्वभाव पर प्रश्न करने, उसका उल्लंघन करने, उसे बदलने या तोड़ने मरोड़ने की अनुमति नहीं दी गई है। समस्त मुद्दों और सभी चीज़ों के मध्य, परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को, अर्थात्, परमेश्वर का क्रोध एवं उसकी करुणा, किसी भी समय पर और किसी भी स्थान में प्रकट किया जा सकता है। वे प्रकृति के हर एक कोने एवं छिद्र में इन पहलुओं को स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं और हर पल स्पष्ट रूप से उन्हें अंजाम देते हैं। परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को समय या अन्तराल के द्वारा सीमित नहीं किया जाता है, या दूसरे शब्दों में, समय या अन्तराल की सीमाओं के द्वारा तय तरीके से परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को यांत्रिक रूप से प्रकट या प्रकाशित नहीं किया जाता है। उसके बजाए, परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को किसी भी समय और स्थान में स्वतन्त्र रूप से प्रकट और प्रकाशित किया जाता है। जब तुम परमेश्वर को अपना मन बदलते और अपने क्रोध को थामते और नीनवे के लोगों का नाश करने से पीछे हटते हुए देखते हो, तो क्या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर केवल दयालु और प्रेमी है? क्या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर का क्रोध खोखले वचनों से बना है? जब परमेश्वर प्रचण्ड क्रोध प्रकट करता है और अपनी दया को वापस ले लेता है, तो क्या तुम कह सकते हो कि वह मानवता के प्रति किसी सच्चे प्रेम का एहसास नहीं करता है? परमेश्वर लोगों के बुरे कार्यों के प्रत्युतर में प्रचण्ड क्रोध प्रकट करता है; उसका क्रोध दोषपूर्ण नहीं है। परमेश्वर का हृदय लोगों के पश्चाताप के द्वारा द्रवित हो जाता है, और यह वही पश्चाताप है जो इस तरह उसके हृदय को बदल देता है। उसका द्रवित होना, मनुष्य के प्रति उसके हृदय का बदलाव साथ ही साथ उसकी दया और सहनशीलता पूर्ण रूप से दोषमुक्त है; वह साफ, स्वच्छ, निष्कलंक और अमिश्रित है। परमेश्वर की सहनशीलता विशुद्ध रूप से सहनशीलता है; उनकी दया विशुद्ध रूप से दया है। उनका स्वभाव मनुष्य के पश्चाताप और उसके विभिन्न चाल-चलन के अनुसार क्रोध, साथ ही साथ दया एवं सहनशीलता को प्रकट करेगा। जो वह प्रकट या प्रकाशित करता है उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि यह पूरी तरह पवित्र है; यह पूरी तरह प्रत्यक्ष है; उनकी हस्ती सृष्टि की किसी भी चीज़ की अपेक्षा पृथक है। कार्यों के वे सिद्धान्त जिन्हें परमेश्वर प्रकट करता है, उसके विचार एवं योजनाएँ या कोई विशेष निर्णय, साथ ही साथ हर एक कार्य, वह किसी भी प्रकार की त्रुटियों या दागों से स्वतन्त्र है। जैसा परमेश्वर ने निर्णय लिया है, वह वैसा ही करेगा, और इस रीति से वह अपने उद्यमों को पूरा करता है। इस प्रकार के परिणाम ठीक और दोषरहित हैं क्योंकि उनका स्रोत दोषरहित और निष्कलंक है। परमेश्वर का क्रोध दोषमुक्त है। इसी प्रकार, परमेश्वर की दया और सहनशीलता, जिसे किसी सृजन के द्वारा धारण नहीं किया जाता है, वे पवित्र एवं निर्दोष हैं, और वे सोच विचार और अनुभव किए जाने पर खरे निकल सकते हैं।

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

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