अपने विवाह-संकट के प्रति एक ईसाई की प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए?

एक अदभुत, मंगलमय विवाह

    जबसे मुझे याद है, मैंने हमेशा अपने माता-पिता को बहस करते हुए और अक्सर अपनी माँ को रोते हुए देखा है। उस वक्त, मैं एक शांतिपूर्ण, सुखी परिवार के लिए तरसती थी। जब मैं बड़ी हुई, तो मैंने एक ऐसे पति की तलाश करने की ठानी, जो मेरे बारे में सोचे और जो अपने परिवार की देखभाल कर सके। मैं एक शानदार, सुखद विवाह की उम्मीद करती थी।

    एक रिश्तेदार ने मेरे पति का मुझसे परिचय कराया, जिसके बाद हमने शादी कर ली और हमारी दो बेटियाँ हुईं। उस समय, हमें रेत का खदान चलाने के लिए अनुबंधित किया गया था, और मेरे पति हर दिन बहुत मेहनत करते थे। लेकिन फिर भी जैसे ही वे घर आते, वे कपड़े धोने और रात का खाना बनाने जैसी चीजें किया करते थे। मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते थे, वे मुझे कभी चिंता नहीं करने देते थे, न ही किसी भी छोटे-बड़े मामले में मुझसे मदद मांगते थे। मेरे सभी पड़ोसी मुझसे ईर्ष्या करते थे क्योंकि मेरे पास इतना अच्छा पति और इतना खुशहाल परिवार था। मैं बहुत संतुष्ट थी; मुझे लगा कि मैंने एक अच्छे इंसान से शादी की है और मेरे शेष जीवन में मुझे सहारा देने के लिए कोई इन्सान मेरे साथ है। बाद में, मेरे पति और एक रिश्तेदार एक व्यवसाय शुरू करने के लिए बाहर चले गए, और मैं घर पर रहकर रेत खदान व्यवसाय को सम्भालने लगी। हालाँकि यह बहुत कठिन और थका देने वाला काम था, लेकिन मुझे यह योग्य लगा, न केवल इसलिए क्योंकि न सिर्फ यह मेरे पति पर से दबाव कम करता था, बल्कि इसलिए भी कि इससे हमारा जीवन और बेहतर बनने लगेगा। इस तरह, एक ही लक्ष्य के लिए हम दोनों के प्रयासों के कारण, एक साल बाद हमने शहर में एक घर खरीद लिया। फिर मुझे शहर में नौकरी मिल गई, और हमने अपने रेत के खदान को सम्भालने के लिए मेरे ससुर को सौंप दिया।

    हमारा संयुक्त जीवन बेहतर होता गया और जीवन बहुत मधुर लगने लगा। मैं अक्सर सोचा करती कि मैं और मेरे पति इसी तरह अपनी बाकी की ज़िन्दगी एक दूसरे से प्यार करते हुए, हाथों में हाथ लिए, एक बेहतर ज़िंदगी का निर्माण करते हुए, बिताएंगे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि दुर्भाग्य चुपचाप मेरी ओर अपने कदम बढ़ा रहा था…

एक अनजान महिला का फोन

    एक दिन, मेरे पति ने कहा कि उनका व्यवसाय अच्छा नहीं चल रहा है इसलिएवे एक दोस्त के साथ शंघाई में एक रेस्तरां खोलना चाहते हैं। मैंने इससे सहमत होते हुए उन्हें 20 हजार युआन दे दिए। उसके बाद, मेरे पति ने घर पैसा भेजना बंद कर दिया, हर बार जब वे घर आते, तो वे कराहते, आह भरते हुए कहते कि रेस्तरां का व्यवसाय अच्छा नहीं चल रहा है। मैं उन्हें सांत्वना देती रहती थी कि वे इतनी चिंता ने करें, उन्हें पैसे भी देती थी ताकि वे अपना व्यवसाय चला सकें। इसके बावजूद, मेरे पति अब उतने आशावादी नहीं रह गये थे, जैसे वे कभी हुआ करते थे। कभी-कभार तो वे फोन पर मुझे जानबूझकर टालने की कोशिश करते थे। फिर भी मैंने इस असामान्य व्यवहार के बारे में ज्यादा नहीं सोचा, यही सोचती रही कि उन पर बहुत दबाव है और वे नहीं चाहते कि मैं चिंता करूँ!

    गर्मियों की छुट्टियों के दौरान एक दिन, मेरे पति शंघाई से घर वापस आए और मेरे और हमारी बेटियों के लिए कुछ कपड़े खरीदे। मुझे बहुत ख़ुशी महसूस हुई। मुझे लगा कि हमसे मिलने के लिए इतना समय निकालना मेरे पति के लिए मुश्किल रहा होगा इसलिए हमें ज़्यादातर समय एक-साथ रहना चाहिए, लेकिन उन्होंने कहा कि उस दोपहर उन्हें कुछ काम था, इसलिए वे अकेले ही चले गये। हालाँकि मुझे थोड़ी निराशा हुई, लेकिन मैंने सोचा कि मेरे पति की व्यस्तता हमारे परिवार की खातिर ही तो है। यह सोचकर मैंने इसे दिल पर नहीं लिया।

    उस शाम, हमारे घर का फोन बजा, तो मैंने फोन उठाया। एक युवती ने मेरे पति का नाम लेकर उनके बारे में पूछा, फिर आक्रामक रूप से कहने लगी कि मेरे पति शंघाई में उसके साथ रह रहे हैं और उनका आठ महीने का बेटा है… जब मैंने यह सुना तो मैं स्तब्ध रह गयी, मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया। अपने दिल में, मैं बार-बार चीख रही थी: “ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा नहीं हो सकता। मेरे पति मुझे कभी धोखा नहीं देंगे, वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे! वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं, वे मुझे कैसे धोखा दे सकते हैं? ये हो ही नहीं सकता है!” लेकिन वह युवती इतने विश्वास से बोल रही थी, मैंने अपने पति के असामान्य व्यवहार के बारे में भी सोचा—वह जो कह रही थी क्या वो सच हो सकता है? यह कैसे हो सकता है? मैं रोना चाहती थी लेकिन आंसू नहीं निकल रहे थे। मामले की तह तक जाने के लिए मैंने तुरंत अपने पति को फोन किया और उन्हें घर आने के लिए कहा।

    जब मैंने अपने पति से इसके बारे में पूछा, तो उनके रोने ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने मुझसे कहा, “मुझे माफ़ कर दो। मुझे एक और मौका दे दो…” “मुझे माफ़ कर दो” ये थोड़े से शब्द उस पल मेरे दिल में एक खंजर की तरह लगे। ऐसा लगा मानो मेरा दिल चीर दिया गया हो। इतना दर्द… पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो कुछ भी किया था, वो इसीलिए था कि मैं एक खुशहाल परिवार पा सकूं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बदले में मुझे बस मेरे पति का विश्वासघात मिलेगा! अपने दिल के दर्द को सहते हुए, मैंने रोते हुए उनसे पूछा कि वे मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते थे। रुंधे गले से उन्होंने कहा कि वे घर से दूर काम करने के अकेलेपन को बर्दाश्त नहीं कर सके, जब उन्होंने देखा कि उनके कई सहकर्मियों के दूसरी औरतों से सम्बन्ध थे, इसलिए वे प्रलोभन का विरोध नहीं कर पाए और.. उस पल बात जो मेरे दिमाग में आई वह थी तलाक। लेकिन अपने पति को इतना पश्चाताप करते हुए और खुद को कोसते हुए देखकर, मुझे झिझक हुई। अगर मैंने वास्तव में उन्हें तलाक दे दिया, तो मेरा परिवार टूट जायेगा, और हमारी बेटियाँ भी इसका दर्द भोगेंगीं… मैं असहनीय दर्द में थी ऐसा लग रहा था कि मेरे दिल पर चाकू मार दिया गया हो, मैं बार-बार यह कहते हुए रोती रही: “हेपरमेश्वर, मैं क्या करूं?”

    मैंने लंबे समय तक इस पर विचार किया। अंत में, अपनी बेटियों को टूटे हुए परिवार में पलने से बचाने के लिए, मैंने अपने पति को माफ़ करने का फैसला किया। मैंने उन्हें रेस्तरां बेचने के लिए शंघाई जाने और फिर घर वापस आने के लिए कहा। उन्होंने विश्वास से वादा किया कि वे ऐसा ही करेंगे। मैंने कभी नहीं सोचा था, कि एक बार मेरे पति शंघाई वापस गए, तो वे मुझे एक संदेश भेजेंगे, जो मुझे निराशा में डुबो देगा: “मेरे पास वास्तव में कोई और विकल्प नहीं है। मुझे तुम्हारे साथ गलत करना ही होगा…” उनके संदेश को पढ़ने के बाद, मैं क्षण भर के लिए सुन्न रह गयी। मैंने सोचा कि कैसे उन्होंने इतनी ईमानदारी से माफी मांगी थी, मेरे सामने ऐसे वफा भरे वादे किए थे, लेकिन यह सब मुझे धोखा देने के लिए बस एक झूठ था। ऐसा लगा मानो मेरा दिल बर्फ के एक गड्ढे में जा गिरा हो, मुझे इतनी अधिक निराशा हुई …

    अपने खुशहाल परिवार को टूटते हुए और मुझे मिली सारी खुशी को मिटटी में मिलता देखकर, मैं अपने बिस्तर पर लेटकर, फूट-फूटकर रोने लगी। मैंने सोचा कि कैसे, जबसे मेरे पति अपना रेस्तरां खोलने के लिए शंघाई गए थे, हमेशा कहते थे कि वे पैसा नहीं कमा पा रहे थे क्योंकि आपसी स्पर्धा बहुत भयंकर थी, मैंने हर बात पर विश्वास किया और उन्हें सारा पैसा दे दिया जो मैंने इतनी मेहनत से कमाया था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे वहाँ एक और महिला रखे हुए हैं। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते थे। आखिर मैंने क्या गलती की थी? उस दौरान, मैंने हर दिन आँसुओं में बिताया। मैं न खा सकती थी न सो सकती थी, मैंने जीवन में अपने उद्देश्य और दिशा को पूरी तरह से खो दिया था, और मुझे बहुत दर्द और भ्रम का एहसास हो रहा था। काम खत्म करके जब मैं परिवारों को साथ चलते, गपशप करते और हंसते हुए देखती थी या अपने पड़ोसियों की खुशहाल आवाज़ सुनती थी, तो मैं बहुत परेशान हो जाती थी। कभी-कभी, मुझमें ऐसा दर्द जगता था कि मैं वास्तव में अपने पति और उसकी नई स्त्री से बदला लेकर अपना भी जीवन समाप्त कर लेना चाहती थी। लेकिन जब मैं अपनी दो जवान बेटियों और अपने बुजुर्ग माता-पिता के बारे में सोचती, तो मैं उन्हें छोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाती थी। मैं बस इतना कर सकती थी कि मैं दर्द में तड़पती रहूँ। मेरे जीवन का हर दिन एक साल जैसा लगता था।

परमेश्वर के वचनों ने मेरे बर्फीले दिल को पिघला दिया

जब मैं सबसे ज्यादा पीड़ित थी, तभी मेरे सहयोगी ने मेरे लिए अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार की गवाही दी। मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा: “वे जो बुरी तरह से दुख में हैं सर्वशक्तिमान उन पर करुणा दिखाता है। साथ ही, वह उन लोगों से ऊब चुका है जो होश में नहीं है, क्योंकि उसे उनसे प्रत्युत्तर पाने में लंबा इंतजार करना पड़ता है। वह खोजने की इच्छा करता है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारी आत्मा को ढूंढता है। वह तुम्हें भोजन-पानी देना चाहता है, जगाना चाहता है, ताकि तुम फिर और भूखे और प्यासे न रहो। जब तुम थके हो और इस संसार में खुद को तन्हा महसूस करने लगो तो, व्याकुल मत होना, रोना मत। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, रखवाला, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारे ऊपर नज़र रखे हुए है, वह तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा में बैठा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा में है जब तुम्हारी याददाश्त एकाएक लौट आयेगी: और इस सत्य को पहचान लेगी कि तुम परमेश्वर से ही आए हो, किसी तरह और किसी जगह एक बार बिछड़ गए थे, सड़क के किनारे बेहोश पड़े थे, और फिर अनजाने में एक पिता आ गया। और फिर तुम्हें यह भी एहसास हो कि सर्वशक्तिमान निरंतर देख रहा था, तुम्हारे लौटकर आने की प्रतीक्षा कर रहा था” (“सर्वशक्तिमान का आह भरना”)। परमेश्वर के ऐसे हृदयस्पर्शी वचनों को सामने देख, मेरे आंसू बारिश की तरह बहने लगे, और सारा दर्द और संयमित भावनाएं जो इतने लंबे समय से मेरे अंदर थीं, मेरे आंसुओं में पिघल गईं और स्वतंत्र रूप से बह गईं। इससे पहले, मैंने हमेशा अपने पति को अपना एकमात्र सहारा माना था, एक अद्भुत, खुशहाल परिवार को अपने जीवन का उद्देश्य माना था। मेरे पति के मुझे धोखा देकर चले जाने के बाद, ऐसा लगा जैसे मेरे दिल को खाली कर भटकने के लिए छोड़ दिया गया है। मैंने जीवन में अपना उद्देश्य खो दिया और आगे क्या करना है, इसके विषय में कुछ न जानते हुए मैं दर्द में जीती रही। और फिर भी परमेश्वर हमेशा मेरे साथ थे, मुझ पर नज़र रखे हुए थे। परमेश्वर उस दर्द और भ्रम को जानते थे जो मैं महसूस कर रही थी, जब मैं अपने सबसे अधिक असहाय समय से गुज़र रही थी, वे मुझे अपने समाने ले आये, उन्होंने अपने वचनों का उपयोग मेरे घायल दिल को आराम देने के लिए किया, और मुझे अंधेरे में रोशनी दिखाई दी। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को स्नेह दिया, उन्होंने मुझे जीने की हिम्मत दी, उन्होंने मुझे समझाया कि केवल वे ही हमारा सहारा बन सकते हैं। परमेश्वर हमारे घर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैंने सोचा कि परमेश्वर के मेरे साथ होते हुए, मैं अकेली नहीं पडूँगी। तब से, मैंने सक्रिय रूप से कलीसियाई जीवन में भाग लिया, अक्सर भजन गाया, प्रार्थना की और अपने भाइयों और बहनों के साथ परमेश्वर के वचनों को पढ़ा। एकदूसरे की मदद करते हुए और आपस में निष्ठा से पेश आते हुए, हमने एक साथ सत्य के बारे में संगति की। मैंने एक प्रकार की शांति और आनंद महसूस किया जो मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था।

परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल से नफरत को हटा दिया

    परमेश्वर में विश्वास करने के बाद से, मेरे हौसले और रूप में अत्यधिक सुधार हुआ। लेकिन रात की तन्हाई में, मैं उन चीज़ों को देखती जो मेरा पति पीछे छोड़ गया था और मैं उस हर छोटी चीज़ के बारे में सोचे बिना नहीं रह पाती थी जो मैंने अपने पति के लिए किया था। जब मैं अपने पति के धोखे के बारे में सोचती तो मुझे दिल चीर देने वाला दर्द महसूस होता था। इच्छा न होने पर भी, मैं इस हद तक नफरत से भर गयी कि मैंने उनसे बदला लेने की सोची। फिर भी मुझे पता था कि मैं अगर अंत में जीत भी गयी, तो भी मैं दोनों पक्षों को बहुत नुकसान पहुंचाउंगी और अधिक लोगों के दर्द में जीने का कारण बनूँगी। लेकिन अपने पति के लिए नफ़रत को मैं छोड़ नहीं पा रही थी, मैं बस परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना कर सकती थी, और उनसे दर्द के इस अंधकार से उबरने में मेरी मदद करने को कह सकती थी।

    बाद में, परमेश्वर के वचन में मैंने पढ़ा: “एक के बाद एक, ये सभी प्रवृत्तियाँ दुष्ट प्रभाव को लेकर चलती हैं जो निरन्तर मनुष्य को पतित करते रहते हैं, जिसके कारण वे लगातार विवेक, मानवता और कारण को गँवा देते हैं, और जो उनकी नैतिकता एवं उनके चरित्र की गुणवत्ता को और भी अधिक नीचे ले जाते हैं, उस हद तक कि हम यहाँ तक कह सकते हैं कि अब अधिकांश लोगों के पास कोई ईमानदारी नहीं है, कोई मानवता नहीं है, न ही उनके पास कोई विवेक है, और कोई तर्क तो बिलकुल भी नहीं है। …ऐसे मनुष्यों के लिए जो स्वस्थ्य शरीर और मन के नहीं है, जो कभी नहीं जानते हैं कि सत्य क्या है, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक चीज़ों के बीच अन्तर नहीं बता सकते हैं, इन किस्मों की प्रवृत्तियाँ एक के बाद एक उन सभी से स्वेच्छा से इन प्रवृत्तियों, जीवन के दृष्टिकोण एवं मूल्यों को स्वीकार करवाती हैं जो शैतान से आती हैं। जो कुछ शैतान उनसे कहता है वे उसे स्वीकार करते हैं कि किस प्रकार जीवन तक पहुँचना है और जीवन जीने के उस तरीके को स्वीकार करते हैं जो शैतान उन्हें “प्रदान” करता है। उनमें सामर्थ्य नहीं है, न ही उनमें योग्यता है, प्रतिरोध करने की जागरूकता तो बिलकुल भी नहीं है” (“स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI”)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मुझे समझ में आया कि मेरे पति का विश्वासघात और मेरा दर्द शैतान की बुरी प्रवृत्तियों के कारण थे। आजकल पूरी दुनिया दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। सभी लोग बुराई की प्रशंसा कर रहे हैं और अधिकाधिक भ्रष्ट हो रहे हैं, गरीबों का मज़ाक उड़ाते हैं लेकिन वेश्याओं को स्वीकारते हैं, नकारात्मक चीजों को ऐसे बढ़ा रहे हैं मानो कि वे सकारात्मक हों। शैतान के बुरे विचारों की तरह, “घर पर एक पत्नी या पति के होते हुए भी एक प्रेमी या प्रेमिका रखना” और “बिना दूसरी स्त्री के एक आदमी को जीवन में कोई अन्य उत्साह नहीं है”; “एक प्रेमी के बिना, एक महिला एक भद्दे जानवर से बढ़कर कुछ नहीं है।” इस तरह के विचारों की समाज में बाढ़ आ गई है और इन्होने पहले से ही हर व्यक्ति के दिल में घर बना लिया है। ये बातें हमारे विचारों का क्षरण करती हैं, विभिन्न चीजों पर कई लोगों की राय को विकृत करती हैं। सभी लोग सोचते हैं कि “एक को रखना”, “दूसरी स्त्री रखना,” “चक्कर चलाना,” और “एक रात के लिए संबंध बनाना” सामान्य है। वे व्यभिचार और दुष्टता के एक बड़े तसले में रहते हैं, वे अपनी शारीरिक वासनाओं को तुष्ट करते हैं, लालच से भरकर पापमय सुखों का आनंद लेते हैं। आजकल कोई भी विवाह की निष्ठा या पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के बारे में बात नहीं करता है, और लोगों के पास अब कोई नैतिकता या शर्म नहीं बची है। लोग केवल अपनी खुद की शारीरिक इच्छाओं की संतुष्टि पर ध्यान देते हैं और कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता कि उनके परिवारजनों को क्या महसूस होता है, वे अधिकाधिक दुष्ट और कपटी हो गये हैं, वे कहीं ज़्यादा स्वार्थी और लालची हो गये हैं। कौन जानता है कि इस कारण से कितने परिवार टूट गए हैं और बिखर गए हैं? कितने लोग इस हद तक ऐसे दर्द में रहते हैं जिससे बचा नहीं जा सकता, कि वे अपने साथी के विश्वासघात को बर्दाश्त न कर पाने के कारण अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं? कितने लोग, घृणा से भरकर, अपने साथी से बदला लेते हैं, और इस प्रकार अंतहीन दुःख में पड़ जाते हैं? मैंने सोचा कि मेरा पति किस तरह से हर प्रकार से मेरे प्रति विचारशीलता दिखाता था, कैसे हम आपस में प्रेम करते थे, एक दूसरे के प्रति दयालु थे, कैसे हमारा एक शानदार, खुशहाल परिवार था। लेकिन जब उसने घर से दूर काम करना शुरू किया, तो उसने अपने कई सहकर्मियों और दोस्तों को विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाते देखा और इसलिए, अनजाने में, वह बुरी प्रवृत्तियों से प्रभावित हो गया। उसने इस दुष्ट प्रवृत्ति का पालन किया और बिना मेरी भावनाओं या हमारी बेटियों की भावनाओं की किसी तरह की परवाह के, एक दूसरी स्त्री के साथ रहने लगा, उसके साथ उसका एक बच्चा था। उसने मुझसे झूठ बोला और मुझे बार-बार धोखा दिया, और उसने वो विवेक और इंसानियत खो दी जो एक इंसान के पास होनी चाहिए। यह सब कड़वा फल था और वो दुर्भाग्य था जो बुरी प्रवृत्ति मनुष्य के लिए लाती है! हम इन्सान सत्य के बिना हैं, हम शैतान की बुरी प्रवृत्तियों को नहीं पहचान पाते, और यह नहीं जानते कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। हम अनैच्छिक रूप से बुरी प्रवृत्तियों से मोहग्रस्त और भ्रष्ट हो रहे हैं और शैतान हमसे खेल रहा है और हमें नुकसान पहुँचा रहा है। एक बार जब मैं इन बातों को समझ गयी, तो मैंने महसूस किया कि मेरे पति सत्य समझ नहीं पाए थे और वे शैतान की चाल समझने में नाकाम रहे थे। उन्होंने दुष्ट प्रवृत्ति का अनुसरण किया था और मुझे जानबूझकर धोखा नहीं दिया था। उस समय, मुझे उनकी धोखेबाज़ी थोड़ी-थोड़ी समझ में आई, और मैं अब उनसे पहले जितनी नफरत नहीं करती थी।

    बाद में, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। मैं अब इस मामले फंसे रहना नहीं चाहती थी जो मुझे इस तरह के दर्द में जीने के लिए मजबूर कर रहा था, इसके बजाय मैं परमेश्वर के वचनों को ईमानदारी से पढ़ना और सत्य का अनुसरण करना चाहती थी। बाद में, मैं कलीसिया में अपनी मेजबानी का कर्तव्य निभाने लगी। मैं एक कलीसियाई जीवन जीती थी और बहनों के साथ परमेश्वर की आरधना करती थी। मेरे दिल में मुझे काफी मुक्ति का अनुभव हुआ और मेरे चेहरे की मुस्कान लौट आई।

शैतान की चालबाजियों पर विजय पाने के लिए परमेश्वर के वचनों ने मेरी अगुवाई की

    एक दिन, मेरे पति के छोटे भाई की पत्नी मेरे घर आई और उसने कहा कि मेरे पति अपनी दूसरी स्त्री और बेटे के साथ हमारे गृह नगर वापस आ गये हैं। उनकी दूसरी स्त्री सिर से पाँव तक जाने माने लेबल के कपड़े पहने हुई थी और बहुत सारे सोने और चांदी के गहनों से लदी थी। उसने मुझसे ये भी कहा कि मुझे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मैं हर समय अच्छी दिखूं… जब मैंने उसे यह कहते सुना, तो मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने सोचा कि जब हम एक साथ रहते थे तो कैसे हम दोनों पति-पत्नी ने कभी भी अनावश्यक रूप से पैसा खर्च नहीं किया था, हम हमेशा से मितव्ययी थे। अब वह पूरी तरह से इसके उलट हो गये थे और वह अपना सारा पैसा अपनी दूसरी स्त्री पर खर्च कर रहे थे। मुझे बहुत तकलीफ हुई, अपनी भावनाओं से हारकर मैं रो पड़ी। मेरी भाभी ने मुझे सांत्वना दी और कहा, “सच कहूँ तो मैं उन्हें देख भी नहीं सकती। मुझे लगता है कि आप और वे एक बेहतर जोड़ी बनाते हैं। यदि आप उन पर दो शादी करने का आरोप लगाती हैं, तो उनकी दूसरी स्त्री छोड़कर चली जाएगी, और वह आपके पास वापस आ जाएगा…” मैं उसके कहने में थोड़ा-बहुत आ गयी, मैंने सोचा, “अगर मैंने ऐसा किया, तो मेरे पति मेरे पास वापस आ जाएंगे और हमारे बच्चों का परिवार फिर से पूरा हो जाएगा।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैंने वास्तव में उन पर दो शादी करने का आरोप लगाया, तो इससे न केवल हम दोनों को नुकसान होगा, बल्कि हमारी बेटियों पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा। मुझे क्या करना चाहिए?” उस पल, मुझे अपने दिल में अत्यधिक दर्द महसूस हुआ। मुझे एहसास हुआ कि मेरी स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की कि वे मेरे दिल को शांत रखें और मेरा मार्गदर्शन करें। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा: “तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर पल प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम्हें मेरे सामने अधिक आना चाहिए। तुम लोगों को शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए…” (आरम्भ में मसीह के कथन के “अध्याय 17”)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एक कड़वी जागृति दी और मुझे एहसास हुआ कि शैतान का एक परीक्षण मुझ पर था। मेरी भाभी मुझे अच्छी तरह से कपड़े पहनने और अपने पति पर दो शादियाँ करने का आरोप लगाने के लिए कह रही थी। ऊपर से,यह सब मेरे हित में प्रतीत होता था, ताकि मेरे पति एक बार फिर मेरे पास लौट आएं। लेकिन सावधानी से विचार करने पर, इन कार्यों का सार, “अगर तुम दयालु नहीं हो, तो मैं भी तुम्हारे लिए न्यायपूर्ण नहीं हूँ”, इस शैतानी और जहरीले विचार के अनुसार कार्य करना था। अगर मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव में जीती रहती हूँ और अपने पति से बदला लेती हूँ तो उनके वर्तमान के परिवार को बहुत तकलीफ होगी और वे मुझसे नफरत करेंगे। शैतान, मुझे और मेरे पति को एक दूसरे पर हमला करने और चोट पहुंचाने के लिए मुझे उकसा रहा था, ताकि हम बिना किसी राहत के दर्द में ही जीयें। दरअसल, चूंकि मेरे पति ने पहले से ही इस दूसरी महिला को मेरे बदले चुन लिया था, इससे यह पता चलता है कि मेरे प्रति अब उनकी कोई भावना नहीं थी। यहाँ तक कि अगर मैं उन्हें किन्हीं गलत साधनों द्वारा वापस पा भी लूँ, तो मैं उन्हें ही पा सकूँगी उनके दिल को नहीं। भावनाओं से रहित ऐसी शादी के क्या मायने होंगे? क्या इससे मुझे और अधिक पीड़ा नहीं होगी?

    इस वक्त मैं परमेश्वर के वचनों के एक अन्य अंश के बारे में सोचा: “पति अपनी पत्नी से क्यों प्रेम करता है? पत्नी अपने पति से क्यों प्रेम करती है? बच्चे क्यों माता-पिता के प्रति कर्तव्यशील रहते हैं? और माता-पिता क्यों अपने बच्चों से अतिशय स्नेह करते हैं? लोग वास्तव में किस प्रकार के अभिप्रायों को आश्रय देते हैं? क्या यह किसी की अपनी योजनाओं और स्वार्थी अभिलाषाओं को संतुष्ट करने के लिए नहीं है?” (“परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे”)। परमेश्वर के वचनों से, मुझे समझ में आया कि मनुष्य स्वार्थी होते हैं। चाहे पति अपनी पत्नी से प्यार करे या पत्नी अपने पति से, हम सभी अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिए ऐसा करते हैं, हम सभी एक दूसरे का इस्तेमाल करते हैं—यह सच्चा प्रेम नहीं है। मैंने सोचा कि कैसे मैं अपने पति के साथ केवल इसलिए अच्छा व्यवहार करती थी कि वे मेरे प्रति भले हों, मेरे बारे में सोचें और मेरी परवाह करें। जबतक मेरे पति मेरी देखभाल करते, मुझे प्यार करते और मेरी हर इच्छा को पूरा करने में समर्थ थे, मैं खुश थी; जब मेरे पति ने मुझे धोखा दिया, तो मैं यह सोचकर दर्द में रह रही थी कि मैंने जो कुछ भी किया है, मेरे पति उसके अयोग्य हैं इसलिए मैं उनसे नफरत करती थी। जब मैंने सुना कि मेरे पति अपनी दूसरी स्त्री के साथ खुशी से रह रहे हैं, तो मुझे जलन और परेशानी का एहसास हुआ, मैंने वही करना चाहा, जो मेरी भाभी ने सुझाया। मैं उन पर दो शादियाँ करने का आरोप लगाना चाहती थी, सब कुछ उनके तरीके से होने देना नहीं चाहती थी। मैं तो ये भी चाहती थी कि वे जेल जायें, ये धमकी देकर उन्हें अपना दिमाग बदलने और मेरे पास वापस ले आना भी चाहती थी। मैंने देखा कि मैं कितनी स्वार्थी, नीच और दुर्भावनापूर्ण हो रही थी, और मैं जो कुछ भी कर रही थी वह वास्तव में मेरी अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए था।

    परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मेरा दिल धीरे-धीरे उज्ज्वल होने लगा और मुझे समझ आ गया कि मुझे क्या करना है। इसलिए मैंने भाभी से कहा, “यह देखते हुए कि उनका एक बच्चा, उन पर मुकदमा करने से किसी का भला नहीं होगा। अगर वे ख़ुशी से जी रहे हैं, तो मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।” उसने मुझे आश्चर्य से देखा, उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था। उसके जाने के बाद, मैंने परमेश्वर के लिए धन्यवाद की एक प्रार्थना कही और ये समझी कि जिस स्थिति की व्यवस्था, परमेश्वर ने मेरे लिए की थी वह कितनी असल थी। शैतान की चालबाजियों के सामने, अगर परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन और अगुवाई नहीं होती, तो मैं निश्चय ही पीड़ा के संसार में फिर से गिर पड़ती और कुछ समझ नहीं पाती, कुछ इस तरह कि मैं शैतान की कपटपूर्ण चाल में फंस जाती और ऐसी चीज़ें कर बैठती जो परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध हैं। मैंने हम दोनों के परिवारों को शैतान की चालबाजियों के असहनीय पीड़ा के भीतर रहने पर मजबूर कर दिया होता—मैंने परमेश्वर को उनके मार्गदर्शन के लिए बहुत धन्यवाद दिया!

मेरे पास एक वास्तव में खुशहाल और शांतिपूर्ण परिवार है

बाद में, मैं परमेश्वर का वचन पढ़ा: “केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम जीवन के अर्थ को जान सकते हो, केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम वास्तविक जीवन जी सकते हो, सत्य को धारण कर सकते हो, सत्य को जान सकते हो, और केवल परमेश्वर के माध्यम से ही तुम सत्य से जीवन को प्राप्त कर सकते हो। केवल स्वयं परमेश्वर ही तुम्हें बुराई से दूर रहने में सहायता कर सकता है और तुम्हें शैतान की क्षति और नियन्त्रण से मुक्त कर सकता है। परमेश्वर के अलावा, कोई भी व्यक्ति और कोई भी चीज़ तुम्हें कष्ट के सागर से नहीं बचा सकती है ताकि तुम अब और कष्ट नहीं सहो: यह परमेश्वर के सार के द्वारा निर्धारित किया जाता है। केवल स्वयं परमेश्वर ही इतने निःस्वार्थ रूप से तुम्हें बचाता है, केवल परमेश्वर ही अंततः तुम्हारे भविष्य के लिए, तुम्हारी नियति के लिए और तुम्हारे जीवन के लिए ज़िम्मेदार है, और वही तुम्हारे लिए सभी चीज़ों को व्यवस्थित करता है” (“स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI”)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मैं बहुत प्रेरित हुई। जिस रास्ते पर मैं चली थी, उसके बारे में सोचूँ तो, परमेश्वर का प्रेम हमेशा मेरे साथ था और मेरा मार्गदर्शन करता था। मेरे पति के धोखा देने के बाद, मैं दर्द में जी रही थी और मैंने जीवन की सारी आशा खो दी थी। मैं जीने में कोई खुशी महसूस नहीं कर पा रही थी, और अगर परमेश्वर ने मुझे नहीं बचाया होता, तो अपने आप को मुक्त करा पाने की शक्ति के बिना, मैं हमेशा दर्द में रहती, मेरे पास जीवन में कोई दिशा या उद्देश्य नहीं होता, और मैं एक चलती-फिरती लाश की तरह लक्ष्यहीन बनकर जीवन भर भटकती रहती। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शैतान द्वारा मनुष्य के भ्रष्टाचार के सत्य को समझने और शैतान के बुरे रुझानों के कारण हुए भ्रष्टाचार और नुकसान को देखने में सक्षम बनाया और उन्होंने मुझे अपने पति के प्रति जो घृणा थी उससे छुटकारा पाने में सक्षम बनाया। जब शैतान ने मुझे लुभाने के लिए मेरी भाभी का इस्तेमाल किया, मुझे अपने दुर्भावनापूर्ण विचारों का पालन करने और अपने पति से बदला लेना चाहने पर मजबूर किया, तो यह परमेश्वर के वचनों का ज्ञान और मार्गदर्शन ही था जिसने मुझे शैतान की चालबाजी को देख पाने और अच्छी तरह से यह समझने दिया कि लोगों के बीच कोई सच्चा स्नेह या प्रेम नहीं होता है, हम सभी एक दूसरे का उपयोग करते हैं, इसलिए मैं अब ऐसी चीजों की तलाश करने का प्रयास नहीं करुँगी। इन सबने मुझे वास्तव में महसूस कराया कि परमेश्वर, मेरी अगुवाई करते हुए और अपने वचनों के साथ मेरा मार्गदर्शन करते हुए, मुझे मेरे दर्द को पीछे छोड़ सकने में और शैतान के नुकसान से छुटकारा पाने में समर्थ बनाते हुए, मेरे साथ थे। मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम इतना वास्तविक था! उसी समय, मुझे आत्म-चिन्तन के माध्यम से यह भी समझ आया कि, जब से मैंने अपने पति से शादी की थी, मैंने उन्हें अपना एकमात्र सहारा माना और विश्वास किया कि वे मुझे एक शानदार, खुशहाल जीवन दे सकते हैं। इस पीड़ा का अनुभव करने के बाद ही मुझे इस बात की सराहना की कि मेरे पति बस एक इंसान थे जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किये गये थे, वे स्वयं शैतान के भ्रष्टाचार में जी रहे थे, मैं किसी भी तरह उन पर भरोसा नहीं कर सकती थी। केवल परमेश्वर ही मेरा सहारा हैं, केवल परमेश्वर के सामने आने से, परमेश्वर के कार्यों का अनुभव करने से, सत्य को समझने और उनके मार्गदर्शन में रहने से मुझे सच्ची खुशी मिल सकती है।

    उस समय से, मैंने अपने पति के विश्वासघात के सारे दर्द को पूरी तरह से पीछे छोड़ दिया। अब मैं परमेश्वर के प्यार से भरपूर, एक बड़े परिवार में रहती हूँ। हर दिन मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ती हूँ, सत्य का अनुसरण करती हूँ, एक सृजे गये प्राणी के कर्तव्य को पूरा करती हूँ और मुझे बहुत शांति और सहजता महसूस होती है। कलीसिया के भीतर, मेरे भाई-बहन और मैं एक दूसरे से प्यार करते हैं और एक वास्तविक परिवार की तरह एक दूसरे को सहारा देते हैं। अगर दूरियां और पूर्वाग्रह पैदा होते भी हैं, तो हम एक दूसरे के साथ पूरी तरह से खुल कर बात कर सकते हैं और अपनी समस्याओं को हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति कर सकते हैं। यह वास्तव में खुशहाल और शांति से भरा-पूरा परिवार है जो मैं हमेशा से चाहती थी! परमेश्वर का धन्यवाद! मैं पूरी शक्ति से सत्य का अनुसरण करुँगी और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देने के लिए एक प्राणी का कर्तव्य निभाउंगी!

यह वेबसाइट, “यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए” में यीशु मसीह को जानना, स्वर्ग के राज्य का रहस्य, प्रभु की वापसी, प्रार्थना, विवाह और परिवार जैसे खंड शामिल हैं जो आपकी आस्था की राह में आने वाली उलझनों में आपकी सहायता करते हैंI 

प्रभु यीशु का स्वागत करें

प्रभु यीशु ने कहा, “आधी रात को धूम मची : ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।’ (मत्ती 25:6) प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी, “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर

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