संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
“यीशु ने उससे कहा, ‘मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ‘ ‘ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। मेरा विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो‘” (यूहन्ना 14:6, 10-11)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
“परमेश्वर के वचन को पढ़ने और परमेश्वर के वचन को समझने के माध्यम से ही परमेश्वर को अवश्य जानना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं: “मैंने देहधारी परमेश्वर को नहीं देखा है, तो मैं परमेश्वर को कैसे जान सकता हूँ?” परमेश्वर का वचन वास्तव में परमेश्वर के स्वभाव का एक प्रकटन है। आप परमेश्वर के वचन से मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति का उद्धार, और जिस तरह से वे उन्हें बचाते हैं उसे देख सकते हैं… क्योंकि परमेश्वर का वचन, परमेश्वर के द्वारा उसे लिखने हेतु मनुष्य के उपयोग के विपरीत, परमेश्वर के द्वारा ही प्रकट होता है। यह व्यक्तिगत रूप में परमेश्वर के द्वारा प्रकट किया जाता है। यह स्वयं परमेश्वर है जो अपने स्वयं के वचनों और अपने भीतर की आवाज़ को प्रकट कर रहा है। हम उन्हें हार्दिक वचन क्यों कहते हैं? क्योंकि वे बहुत गहराई से निकलते हैं, और परमेश्वर के स्वभाव, उनकी इच्छा, उनके विचारों, मानवजाति के लिए उनके प्रेम, उनके द्वारा मानवजाति उद्धार, तथा मानवजाति से उनकी अपेक्षाओं को प्रकट कर रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के बीच कठोर वचन, शांत एवं कोमल वचन, कुछ विचारशील वचन हैं, और कुछ प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचन हैं जो अमानवीय हैं। यदि आप केवल प्रकाशित करने से सम्बन्धी वचनों को देखेंगे, तो आप महसूस करेंगे कि परमेश्वर काफी कठोर है। यदि आप केवल शांत एवं कोमल पहलु को देखेंगे, तो ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर के पास ज़्यादा अधिकार नहीं है। इसलिए इस विषय में आपको सन्दर्भ से बाहर होकर नहीं समझना चाहिए। आपको इसे हर एक कोण से अवश्य देखना चाहिए। कभी-कभी परमेश्वर शांत एवं करुणामयी दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम को देखते हैं; कभी-कभी वह कठोर दृष्टिकोण से बोलता है, और लोग परमेश्वर के अपमान न किए जा सकने योग्य स्वभाव को देखते हैं। मनुष्य विलापनीय ढंग से गंदा है और परमेश्वर के मुख को देखने के योग्य नहीं है, और परमेश्वर के सामने आने के योग्य नहीं है। लोगों का परमेश्वर के सामने आना अब पूरी तरह परमेश्वर के अनुग्रह से ही है। जिस तरह परमेश्वर कार्य करता है और उसके कार्य के अर्थ से परमेश्वर की बुद्धि को देखा जा सकता है। भले ही लोग परमेश्वर के सम्पर्क में न आएँ, तब भी वे परमेश्वर के वचनों में इन चीज़ों को देखने में सक्षम होंगे। जब सच्ची समझ वाला कोई व्यक्ति मसीह के सम्पर्क में आता है, तो उसकी समझ उनके साथ मेल खा सकती है, किन्तु जब केवल सैद्धान्तिक समझ वाले कोई व्यक्ति परमेश्वर के सम्पर्क में आता है, तो यह उससे मेल नहीं खा सकता है। सत्य का यह पहलू सबसे गहरा एवं गम्भीर रहस्य है, जिसकी गहराई को नापना कठिन है। उन वचनों का सार निकालिए जिन्हें परमेश्वर देहधारण के भेद के विषय में कहते हैं, विभिन्न कोणों से उन्हें देखिए, फिर अपने बीच इन चीज़ों की चर्चा कीजिए। आप प्रार्थना कर सकते हैं, और इन चीज़ों पर बहुत अधिक विचार और चर्चा कर सकते हैं। कदाचित् पवित्र आत्मा आपको प्रकाशित करे और उन्हें समझने की आपको अनुमति दे। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके पास परमेश्वर के सम्पर्क में आने का कोई अवसर नहीं है, और आपको एक बार में अपने मार्ग का थोड़ा सा एहसास करने, तथा परमेश्वर की सच्ची समझ हासिल करने के लिए इस तरीके से अनुभव पर भरोसा अवश्य रखना चाहिए।”
“अंत में दिनों में जब परमेश्वर देहधारी होता है, तो सब कुछ सम्पन्न करने, और सब कुछ स्पष्ट करने के लिए वह मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। केवल उसके वचनों में ही तुम देख सकते हो कि वह क्या है; केवल उसके वचनों में ही तुम देख सकते हो कि वह परमेश्वर स्वयं है। जब देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह वचन बोलने के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं करता है—इस कारण से तथ्यों की कोई आवश्यकता नहीं होती है; वचन काफ़ी हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि वह मुख्य रूप से इसी कार्य को करने के लिए, मनुष्यों को उसके वचनों की सामर्थ्य और सर्वोच्चता को देखने देने, मनुष्यों को यह देखने देने कि वह कैसे विनम्रता पूर्वक अपने आप को अपने वचनों में छिपाता है, और अपने वचनों में अपनी समग्रता को मनुष्य को जानने देने के लिए, आया है। जो कुछ भी वह है और उसके पास है वह उसके वचनों में है, उसकी बुद्धि और चमत्कारिकता उसके वचनों में है। इसमें तुम्हें उन कई तरीकों को दिखाया जाता है जिनके द्वारा परमेश्वर अपने वचनों को बोलता है।”
“मनुष्य परमेश्वर के कार्यों का अनुभव करने के द्वारा उसे जान लेता है, और परमेश्वर को जानने का कोई अन्य सही मार्ग नहीं है।”
“मनुष्य के द्वारा परमेश्वर के वचन को अनुभव करने की प्रक्रिया असल में परमेश्वर के वचनों के देह में प्रकट होने के बारे में जानने की प्रक्रिया के समान है। मनुष्य जितना अधिक परमेश्वर के वचनों को अनुभव करता है, उतना ही अधिक परमेश्वर के आत्मा के बारे में जानता है। परमेश्वर के वचनों के अपने अनुभव के द्वारा, मनुष्य आत्मा के कार्य के सिद्धांतों को समझता है और स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर के बारे में जानता है। वास्तविकता में, जब परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण बनाता और लाभ प्रदान करता है, तो वह उन्हें व्यावहारिक परमेश्वर के कामों के बारे में बता रहा होता है। वह व्यावहारिक परमेश्वर के कार्य का उपयोग लोगों को देह धारण का महत्व दिखाने और यह दिखाने के लिए कर रहा होता है कि परमेश्वर का आत्मा मनुष्य के सामने वास्तव में प्रकट हुआ है।”
“हमारी जानकारी के बिना, इस महत्वहीन व्यक्ति ने, परमेश्वर के कार्य में एक के बाद एक कदम में हमारी अगुवाई की है। हम अनगिनत परीक्षाओं से गुजरते हैं, अनगिनत ताड़नाओं के अधीन किये जाते हैं और मृत्यु द्वारा हमारी परीक्षा ली जाती है। हम परमेश्वर के धर्मी और आलीशान स्वभाव के बारे में सीखते हैं, उसके प्रेम और करुणा का आनंद भी लेते हैं; परमेश्वर के महान सामर्थ्य और विवेक की सराहना करते हैं, परमेश्वर की सुंदरता के गवाह बनते हैं, और मनुष्य को बचाने की परमेश्वर की उत्कट इच्छा को देखते हैं। इस साधारण मनुष्य के वचनों में, हमें परमेश्वर का स्वभाव और सार ज्ञात हो जाता है; परमेश्वर की इच्छा समझ जाते है, मनुष्य की प्रकृति और उसका सार ज्ञात हो जाता, हम उद्धार और पूर्ण होने का मार्ग जान जाते हैँ। उसके वचन हमारी मृत्यु का कारण बनते हैं, और हमारे पुनर्जन्म का कारण बनते हैं; उसके वचन हमें राहत देते हैं, मगर हमें ग्लानि और कृतज्ञता की भावना के साथ नष्ट हुआ भी छोड़ देते हैं; उसके वचन हमें आनंद और शांति देते हैं, परंतु बड़ी पीड़ा भी देते हैं। कभी-कभी हम उसके हाथों में वध हेतु मेम्नों के समान होते हैं, कभी-कभी उसकी आँख के तारे के समान होते हैं, और उसके प्रेम एवं स्नेह का आनंद उठाते हैं; कभी-कभी हम उसके शत्रु के समान होते हैं, उसकी आँखों में उसके क्रोध द्वारा भस्म हो जाते हैं। हम उसके द्वारा बचायी गई मानव जाति हैं, हम उसकी दृष्टि में भुनगे हैं, और हम खोई हुई भेड़ें हैं जिन्हें ढूँढने में वह दिन और रात लगा रहता है। वह हम पर दया करता है, वह हमें तुच्छ जानता है, वह हमें ऊपर उठाता है, वह हमें आराम देता है और प्रोत्साहित करता है, वह हमारा मार्गदर्शन करता है, वह हमें प्रबुद्ध करता है, वह हमारी ताड़ना करता है और हमें अनुशासित करता है, और यहाँ तक कि वे हमें श्राप भी देता है। वह रात-दिन हमारी चिंता करता है, वह रात-दिन हमारी सुरक्षा और परवाह करता है, वह हमारा पक्ष कभी नहीं छोड़ता है, और वह अपनी सारी देखभाल हमारे लिए लगा देता है और हमारे लिए किसी भी कीमत का भुगतान करता है। इस छोटी और साधारण सी देह के वचनों में, हमने परमेश्वर की संपूर्णता का आनंद लिया है, और उस मंजिल को देखते हैं जो परमेश्वर ने हमें प्रदान की है। इसके बावजूद, थोथा घमंड अभी भी हमारे दिलों के अंदर पीछा करता है, और हम तब भी ऐसे किसी व्यक्ति को अपने परमेश्वर के रूप में स्वीकार करने के लिए सक्रिय रूप से तैयार नहीं हैं। यद्यपि उसने हमें बहुत अधिक दिव्य-भोजन (मन्ना), बहुत अधिक आनंद दिया है, किंतु इनमें से कोई भी हमारे हृदय से प्रभु के स्थान को नहीं हड़प सकता है। हम इस व्यक्ति की विशिष्ट पहचान और हैसियत का केवल बड़ी अनिच्छा के साथ आदर हैं। यदि वह हमसे, यह अभिस्वीकृत करवाने के लिए कि वे परमेश्वर है, बात नहीं करता है, तो हम उसे ऐसे परमेश्वर के रूप में अभिस्वीकृत करना अपने ऊपर कभी नहीं लेंगे जो कि शीघ्र आने वाला है मगर हमारे बीच में बहुत लंबे समय से काम करता आ रहा है।”
“परमेश्वर के कथन लगातार चल रहे हैं और वह विभिन्न तरीकों और परिप्रेक्ष्यों का उपयोग करके हमें चेतावनी देताहै कि हम क्या करें और अपने हृदय की आवाज को अभिव्यक्त करता है। उसके वचनों में जीवन की सामर्थ्य है, और उसके शब्द हमें वह मार्ग दिखाते हैं जिन पर हमें चलना चाहिए, और हमें समझने देते हैं कि सत्य क्या है। हम उसके वचनों की ओर खिंचना शुरू कर देते हैं, हम उसके लहजे और तरीके पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं और अवचेतन मन में इस साधारण व्यक्ति के हृदय की आवाज में रुचि लेना आरंभ कर देते हैं। हमारी मंज़िल और उद्धार के लिए, वह हमारे लिए श्रमसाध्य प्रयास करता है, नींद और भोजन गँवा देता है, हमारे लिए रोता है, हमारे लिए आँहें भरता है, हमारे लिए बीमारी में कराहता है, अपमान सहता है, और हमारी संवेदनहीनता और विद्रोहीपन के कारण उसका हृदय लहूलुहान होता है और आँसू बहाता है; उसका यह व्यक्तित्व और आधिपत्य एक साधारण मनुष्य से बढ़ कर है, और कोई भी भ्रष्ट मनुष्य उन्हें धारण कर या पा नहीं सकता है। उसमें जो सहनशीलता और धैर्य है, वह किसी साधारण मनुष्य में नहीं हो सकता है, और उसके जैसा प्रेम किसी सृजित प्राणी में नहीं हो सकता है। उसके अलावा अन्य कोई भी हमारे सभी विचारों को नहीं जान सकता है, या हमारे स्वभाव और सार को नहीं समझ सकता है, या मानवजाति के विद्रोहीपन और भ्रष्टता का न्याय कर सकता है, या स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से हमसे बातचीत या हमारे बीच में कार्य कर सकता है। उसके अलावा अन्य कोई परमेश्वर के अधिकार, विवेक और प्रतिष्ठा को धारण नहीं कर सकता है; परमेश्वर का स्वभाव और उसके पास क्या है और जो वह है, अपनी संपूर्णता में, प्रवाहित होते हैं। उसके अलावा कोई अन्य हमें मार्ग दिखा या प्रकाश तक ले जा नहीं सकता है। उसके अलावा कोई अन्य परमेश्वर के उन रहस्यों को प्रकट नहीं कर सकता है जिन्हें परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ से अब तक प्रकट नहीं किया है। उसके अलावा कोई अन्य हमें शैतान के बंधन और हमारे भ्रष्ट स्वभाव से बचा नहीं सकता है। वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और परमेश्वर के हृदय की आवाज़, परमेश्वर के सभी प्रोत्साहनों, और मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर के न्याय के सभी वचनों को व्यक्त करता है। उसने एक नया युग, एक नया काल आरंभ किया है, और वह एक नया स्वर्ग और पृथ्वी, नया काम लाया है, और वह हमारे लिए नई आशा लाया है, और हमारे उस जीवन का अंत किया है जिसे हम अस्पष्टता में जी रहे थे, और हमें उद्धार के मार्ग को पूर्ण रूप से देखने दिया है। उसने हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व को जीता है, हमारे हृदयों को जीता है। उस क्षण के बाद से, हमारे मन सचेत हो गए हैं, और हमारी आत्माएँ पुर्नजीवित होती हुई प्रतीत होने लगी हैं: यह साधारण, महत्वहीन व्यक्ति, जो हमारे बीच में रहता है, जिसे हमने लंबे समय तक तिरस्कृत किया है—क्या वह प्रभु यीशु नहीं हैं; जो सदैव हमारे विचारों में हैं और जिसके लिए हम रात-दिन लालायित रहते हैं? यह वही है! यह वास्तव में वही है! वह हमारा परमेश्वर है! वह सत्य, मार्ग, और जीवन है! उसने ही हमें फिर से जीने की, ज्योति देखने की अनुमति दी है, और हमारे हृदयों को भटकने से रोका है। हम परमेश्वर के घर में लौट आए हैं, हम उसके सिंहासन के सामने लौट आए हैं, हम उसके आमने-सामने हैं, हमने उसका मुखमंडल देखा है, और आगे का मार्ग देखा है। इस समय हमारे हृदयों को परमेश्वर ने पूरी तरह से जीत लिया है, हमें अब और संदेह नहीं कि वह कौन है, और हम उसके कार्य और वचन का अब और विरोध नहीं करते हैं, और हम उसके सामने पूरी तरह से नतमस्तक हो गए हैं। बस अपने शेष जीवन भर परमेश्वर के पद चिन्हों का अनुसरण करने, और उसके द्वारा पूर्ण किए जाने, उसके अनुग्रह का बदला चुकाने, और हमारे प्रति उसके प्रेम का बदला चुकाने, और उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करने और उसके कार्य में सहयोग करने, और वह सब करने जो उसके द्वारा हमें सौंपे गए कार्य को पूरा करने के लिए हम कर सकते हैं, के सिवाय हमारी और कोई चाह नहीं है।
परमेश्वर के द्वारा जीता जाना मार्शल आर्ट की प्रतिस्पर्धा के समान है।
परमेश्वर का प्रत्येक वचन हमारे मर्मस्थल पर चोट करता है, और हमें दुःखी एवं भयभीत कर देता है। वह हमारे विचारों को प्रकट करता है, हमारी कल्पनाओं को प्रकट करता है, और हमारे भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करता है। वह सब जो हम कहते और करते हैं, और हमारे प्रत्येक विचार और सोच, हमारा स्वभाव और सार उसके वचनों के द्वारा प्रकट होता है, हमें अपमानित करता हुआ और भय से काँपता हुआ छोड़ देता है। हमें यह महसूस कराते हुए कि हम पूरी तरह उजागर कर दिए गए हैं, और यहाँ तक कि पूरी तरह से राजी महसूस कर करवाते हुए, वह हमें हमारे सभी कार्यों, हमारे लक्ष्यों और अभिप्रायों को, और यहाँ तक कि हमारे भ्रष्ट स्वभाव जिसे हमने कभी खोजा नहीं है, के बारे में भी बताता है। परमेश्वर अपने प्रति हमारे विरोध के लिए हमारा न्याय करता है, अपनी ईशनिंदा और तिरस्कार के कारण हमारी ताड़ना कता है, और हमें यह अनुभव करवाता है कि उसकी दृष्टि में हम मूल्यहीन हैं, और हम ही जीवित शैतान हैं। हमारी आशाएँ चूर-चूर हो जाती हैं, हम उससे अविवेकपूर्ण माँगें करने और उसके सामने ऐसा प्रयास करने का साहस अब और नहीं करते हैं, और यहाँ तक कि रात भर में हमारे स्वप्न गायब हो जाते हैं। यह ऐसा तथ्य है जिसकी कल्पना हममें से कोई नहीं कर सकता है और जिसे हममें से कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता है। एक क्षण के लिए, हमारे मन असंतुलित हो जाते हैं, और हम नहीं जानते हैं कि मार्ग पर आगे कैसे बढ़ें, नहीं जानते हैं कि अपना विश्वास कैसे जारी रखें। ऐसा लगता है कि हमारा विश्वास जहाँ था वहीं वापस लौट गया है, और यह कि हम कभी प्रभु यीशु से मिले और परिचित हुए नहीं हैं। हमारी आँखों के सामने हर बात हमें हक्का-बक्का कर देती है, और हमें महसूस करवाती है मानो हमें बाहर कर दिया गया है। फिर हम हताश होते हैं, हम हतोत्साहित होते हैं, और हमारे हृदयों की गहराई में अदम्य क्रोध और निरादर होता है। हम उसे बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, कोई तरीका ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं, और, उससे भी अधिक, हम अपने उद्धारकर्ता यीशु की प्रतीक्षा करना जारी रखने का प्रयास करते हैं और अपने हृदयों को उसके सामने उँड़ेलते हैं। यद्यपि ऐसे अवसर भी आते हैं जब हम बाहर से न तो घमंडी होते हैं और न विनम्र, तब भी अपने हृदयों में हम नुकसान की ऐसी भावना से व्यथित हो जाते हैं जैसी पहले कभी नहीं हुई। यद्यपि कभी-कभी हम बाहरी तौर पर असामन्य रूप से शांत दिखाई दे सकते हैं, किंतु भीतर हम समुद्र की गर्जना जैसी यातना का अनुभव करते हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें हमारी सभी आशाओँ और स्वप्नों को वंचित कर दिया है, और हमारी अनावश्यक इच्छाओं से रहित कर दिया है, हम यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वह हमारा उद्धारकर्ता है और हमारा उद्धार करने में सक्षम हैं। उसके न्याय एवं ताड़ना ने हमारे और उसके बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है और यहाँ तक कि कोई उसे पार करने की इच्छा भी नहीं कर रहा है। उसके न्याय और ताड़ना के कारण पहली बार हम इतना अधिक नुकसान और इतना बड़ा अपमान झेलते हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें परमेश्वर के आदर और मनुष्य के अपराध के बारे में सहनशीलता की वास्तव में सराहना करने दी है, जिसकी तुलना में हम बहुत अधम और अशुद्ध हैं। उसके न्याय और ताड़ना ने पहली बार हमें अनुभव कराया कि हम कितने अभिमानी और आडंबरपूर्ण हैं, और कैसे मनुष्य कभी परमेश्वर की बराबरी नहीं कर सकता है, और उसके समान नहीं बन सकता है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमारे भीतर यह उत्कंठा उत्पन्न की है कि हम ऐसे स्वभाव में अब और न रहें, और हमारे भीतर ऐसे स्वभाव तथा सार से जितना जल्दी हो सके छुटकारा पाने की, और आगे उसके द्वारा तिरस्कृत और उसके लिए घृणित न होने की इच्छा उत्पन्न की है। उसके न्याय और ताड़ना ने हमारे लिए उसके वचनों का आज्ञापालन करना, और अब उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के विरुद्ध विद्रोह न करना सुखद बनाया। उसके न्याय और ताड़ना ने हमें एक बार फिर जीवन की खोज करने की इच्छा दी है, और उसे हमारे उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने की प्रसन्नता दी है… हम विजय के कार्य से बाहर निकल गए हैं, नरक से बाहर आ गए हैं, मृत्यु की छाया की घाटी से बाहर आ गए हैं… सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमें, लोगों के इस समूह को जीत लिया है! उसने शैतान पर विजय पाई है, और अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया है!”
“जैसा मनुष्य का दृष्टिकोण होता है वैसा परमेश्वर का दृष्टिकोण नहीं होता, इसके अलावा, उसे काम करने के लिये मनुष्य के दृष्टिकोण, उनके ज्ञान, उनके विज्ञान या उनके दर्शनशास्त्र या कल्पनाओं का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि प्रत्येक बात जो परमेश्वर करता और जो परमेश्वर प्रगट करता है वह सत्य से जुड़ी होती है। यानिकि उसका हर शब्द और हर कार्य सच से संबंधित है। यह सत्य कोई आधारहीन कल्पना नहीं है। यह सत्य और ये शब्द परमेश्वर द्वारा उजागर किए गये हैं। वह परमेश्वर के तत्व और उसके जीवन के कारण हुए हैं। क्योंकि ये शब्द और तत्व और प्रत्येक बात जो परमेश्वर ने की, सच है, इसलिए हम कह सकते हैं कि परमेश्वर का तत्व पवित्र है। अन्य शब्दों में प्रत्येक बात जो परमेश्वर कहते और करते हैं वह लोगों के लिए जीवन शक्ति और प्रकाश लाती है; यह लोगों को सकारात्मक बातों को और उन सकारात्मक बातों की वास्तविकता को देखने की अनुमति देती है और यह मानवता को प्रकाश की राह की ओर इंगित करती है ताकि वे सही राह पर चल सकें। ये बातें परमेश्वर के तत्व के कारण निर्धारित की गई और ये परमेश्वर के तत्व की पवित्रता के कारण निर्धारित की गई हैं।”
“वह भी उसी गंदी दुनिया में रहता है जिसमें तुम रहते हो, किन्तु वह विचार-शक्ति और अंतर्दृष्टि से सम्पन्न है; वह गंदगी से नफ़रत करता है। तुम स्वयं अपने वचनों और क्रियाओं में गंदी चीजों को नहीं देख सकते हो, किन्तु वह देख सकता है—वह इन्हें तुम्हें दिखा सकता है। तुम्हारी वे पुरानी चीजें—तुममें सभ्यता, अंतर्दृष्टि और समझ का अभाव, तुम्हारी पिछड़ी जीवनशैली—अब उनके बारे में उसके खुलासे के माध्यम से अनावृत हो गई हैं। परमेश्वर इस तरह से कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आया है, ताकि लोग उसकी पवित्रता और उसके धर्मी स्वभाव को देख लें। वह तुम्हारा न्याय करता है तुम्हें ताड़ना देता है और तुम्हें तुम्हें स्वयं के बारे में समझाता है। कभी—कभी तुम्हारी राक्षसी प्रकृति प्रकट हो जाती है और वह इसे तुम्हें दिखा सकता है। वह मानवजाति के सार को बहुत अच्छी तरह से जानता है। वह उसी तरह से रहता है जैसे तुम रहते हो, वही भोजन करता है जैसा तुम करते हो, उसी प्रकार के घर में रहता है जैसे में तुम रहते हो, फिर भी वह तुम्हारी तुलना में बहुत अधिक जानता है। किन्तु वह जिनसे सबसे ज्यादा नफ़रत करता है वे हैं मानवजाति का जीवन का तत्वज्ञान और उनका धोखा और उनकी कुटिलता। वह इन चीजों से नफ़रत करता है और वह इन्हें स्वीकार करने का अनिच्छुक है। वह विशेष रूप से मानवजाति की दैहिक अंतःक्रियाओं से नफ़रत करता है। यद्यपि वह मानवीय अंतःक्रियाओं के कुछ सामान्य ज्ञान को पूरी तरह से नहीं समझता है, किन्तु वह पूरी तरह से अवगत हो जाता है जब लोग अपना कुछ भ्रष्ट स्वभाव उजागर करते हैं। अपने कार्य में, वह लोगों में इन बातों के माध्यम से उनसे बोलता है और उन्हें शिक्षा देता है, और इनके माध्यम से वह लोगों का न्याय करता है और अपने धर्मी और पवित्र स्वभाव को प्रकट करता है। इस तरह से लोग उसके कार्य के लिए विषमता बन जाते हैं। यह केवल देहधारी परमेश्वर है जो मानवजाति के सभी प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों और शैतान के सभी बदसूरत चेहरों को प्रकट कर सकता है। वह तुम्हें दण्ड नहीं देता है, वह तुम्हें परमेश्वर की पवित्रता के लिए सिर्फ एक विषमता बनवाएगा, और फिर तुम अपने आप में अडिग नहीं रह सकते हो क्योंकि तुम अत्यधिक गंदे हो। वह उन चीजों के माध्यम से बोलता है जो लोग प्रकट करते हैं और वह उन्हें उजागर करता है ताकि लोग जान सकें कि परमेश्वर कितना पवित्र है। वह मनुष्य में थोड़ी सी भी गंदगी, यहाँ तक कि उनके हृदयों या वचनों और क्रियाओं में सूक्ष्मतम गंदे विचार भी नहीं छोड़ेगा जो उसकी इच्छा के अनुरूप नहीं हैं। उसके वचनों के माध्यम से, किसी भी व्यक्ति में औरकिसी भी चीज में गंदगी नहीं रहेगी—यह सब उजागर हो जाएगी। केवल तभी है कि तुम देखते हो कि वह वास्तव में लोगों से भिन्न है। वह मानव जाति में थोड़ी सी भी गंदगी से पूरी तरह से घृणा करता है। कभी-कभी लोग भी नहीं समझते हैं, और कहते हैं: “तू हमेशा क्यों नाराज़ रहता है? परमेश्वर, तू मानवजाति की कमजोरियों के प्रति विचारशील क्यों नहीं हैं? तुझमें मानवजाति के लिए थोड़ी सी क्षमा क्यों नहीं है? तू मनुष्य के प्रति इतना विचारशून्य क्यों हैं? तू जानता है कि लोग कितने भ्रष्ट हैं, तब भी तू लोगों के साथ इस तरह से व्यवहार क्यों करता है?” वह पाप से घृणा करता है; वह पाप से नफ़रत करता है। वह विशेष रूप से ऐसी किसी भी विद्रोहशीलता से घृणा करता है जो तुम में हो सकती है। जब तुम किसी विद्रोही स्वभाव को उजागर करते हो तो वह हद से ज्यादा घृणा करता है। इन्हीं चीजों के माध्यम से उसका स्वभाव और अस्तित्व व्यक्त किया जा सकता है। जब तुम इसकी अपने आप से तुलना करोगे, तो तुम देखोगे कि यद्यपि वह वही भोजन खाता है, वही कपड़े पहनता है, और वही आनंद लेता है जैसे लोग लेते हैं, यद्यपि वह मानवजाति के पास-पास और साथ रहता है, किन्तु वह वही नहीं है। क्या यह एक विषमता होने का असली अर्थ नहीं है? यह लोगों में इन्हीं बातों के माध्यम से है कि परमेश्वर की महान सामर्थ्य स्पष्ट रूप से दिखाई देती है; यह अंधकार है जो प्रकाश के अनमोल अस्तित्व को उभारता है।”
“वह मनुष्य के सार-तत्व से अच्छी तरह से परिचित है, वह सभी प्रकार के अभ्यास को प्रगट कर सकता है जो सब प्रकार के लोगों से सम्बन्धित होते हैं। वह मानव के भ्रष्ट स्वभाव एवं विद्रोही आचरण को भी बेहतर ढंग से प्रगट कर सकता है। वह सांसारिक लोगों के मध्य नहीं रहता है, परन्तु वह नश्वर मनुष्यों के स्वभाव और सांसारिक लोगों की समस्त भ्रष्टता से भली भांति अवगत है। वह ऐसा ही है। हालाँकि वह संसार के साथ व्यवहार नहीं करता है, फिर भी वह संसार के साथ व्यवहार करने के नियमों को जानता है, क्योंकि वह मानवीय स्वभाव को पूरी तरह से समझता है। वह वर्तमान एवं अतीत दोनों के आत्मा के कार्य के विषय में जानता है जिसे मनुष्य की आंखें नहीं देख सकती हैं जिसे मनुष्य के कान नहीं सुन सकते हैं। इसमें बुद्धि शामिल है जो जीवन का दर्शनशास्त्र एवं आश्चर्य नहीं है जिसकी गहराई नापना मनुष्य को कठिन जान पड़ता है। वह ऐसा ही है, लोगों के लिए खुला और साथ ही लोगों से छिपा हुआ भी है। जो कुछ वह अभिव्यक्त करता है वह ऐसा नहीं है जैसा एक असाधारण मनुष्य होता है, परन्तु अंतर्निहित गुण एवं आत्मा का अस्तित्व है। वह संसार भर में यात्रा नहीं करता है परन्तु उसके विषय में हर एक चीज़ को जानता है। वह “वन-मानुषों” के साथ सम्पर्क करता है जिनके पास कोई ज्ञान या अंतर्दृष्टि नहीं है, परन्तु वह ऐसे शब्दों को व्यक्त करता है जो ज्ञान से ऊँचे और महान मनुष्यों से ऊपर हैं। वह कम समझ एवं सुन्न लोगों के समूह के मध्य रहता है जिनके पास मानवता नहीं है और जो मानवीय परम्पराओं एवं जीवनों को नहीं समझते हैं, परन्तु वह मानवजाति से सामान्य मानवता को जीने के लिए कह सकता है, ठीक उसी समय वह मानवजाति के नीच एवं घटिया मनुष्यत्व को प्रगट करता है। यह सब कुछ वही है जो वह है, वह किसी भी मांस और लहू के व्यक्ति की अपेक्षा अधिक ऊँचा है। उसके लिए, यह जरुरी नहीं है कि वह उस काम को करने के लिए जिसे उसे करने की आवश्यक है जटिल, बोझिल एवं पतित सामाजिक जीवन का अनुभव करे और भ्रष्ट मानवजाति के सार-तत्व को पूरी तरह से प्रगट करे। ऐसा पतित सामाजिक जीवन उसकी देह को उन्नत नहीं करता है। उसके कार्य एवं वचन मनुष्य केआज्ञालंघन को ही प्रगट करते हैं और संसार के साथ निपटने के लिए मनुष्य को अनुभव एवं शिक्षाएं प्रदान नहीं करते हैं। जब वह मनुष्य को जीवन की आपूर्ति करता है तो उसे समाज या मनुष्य के परिवार की जांच पड़ताल करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। मनुष्य का खुलासा एवं न्याय करना उसकी देह के अनुभवों की अभिव्यक्ति नहीं है; यह लम्बे समय तक मनुष्य के आज्ञालंघन को जानने के बाद उसकी अधार्मिकता को प्रगट करने और मानवता के भ्रष्ट स्वभाव से घृणा करने के लिए है। वह कार्य जिसे परमेश्वर करता है वह मनुष्य पर अपने स्वभाव को पूरी तरह से प्रगट करने और अपने अस्तित्व को अभिव्यक्त करने के लिए है। केवल वही इस कार्य को कर सकता है, यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे मांस और लहू का व्यक्ति हासिल कर सकता है। परमेश्वर के कार्य के लिहाज से, मनुष्य यह नहीं बता सकता कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। मनुष्य परमेश्वर के कार्य के आधार पर भी उसे एक सृजे गए व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत करने में असमर्थ है। जो वह है उससे भी उसे एक सृजे गए प्राणी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। मनुष्य उसे केवल एक ग़ैर-मानव मान सकता है, किन्तु वह यह नहीं जानता है कि उसे किस श्रेणी में रखा जाए, अतः मनुष्य उसे परमेश्वर की श्रेणी में सूचीबद्ध रखने के लिए मजबूर है। मनुष्य के लिए ऐसा करना असंगत नहीं है, क्योंकि परमेश्वर ने लोगों के मध्य बहुत सारा कार्य किया है जिसे मनुष्य करने में असमर्थ है।”
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